Madan Lal Dhingra Information मदन लाल ढींगरा क्रांतिकारी का जीवन परिचय – Madan Lal Dhingra मदन लाल ढींगरा एक महान क्रन्तिकारी थे इनके बारे में युवाओ को जरूर पढ़ना चाहिए कैसे एक युवा क्रन्तिकारी सारे ऐशो आराम का त्याग करता है सिर्फ इसीलिए की वो इस भारत भूमि को आजाद करवाने में अपनी आहुति दे सके।
Madan Lal Dhingra कर्जन वायली का वध करके फांसी के फंदे पर झूल गए कर्जन वायली कौन था ये आप आगे पढ़ लेंगे। कर्जन वायली हत्याकांड के कारण ही Madan Lal Dhingra जी को फांसी हुई थी। दुनिया भले ही इसे हत्याकांड कहे परन्तु हम तो इसे एक दुष्ट का वध करना ही बोलेंगे।
मैं एक हिंदू होने के कारण समझता हूं यदि हमारी मातृभूमि के विरुद्ध कोई अत्याचार करता है तो वह ईश्वर का अपमान करता है। हमारी मात्रभूमि का जो हित है वही श्रीराम का भी हित है।
दोस्तों विचार कीजिये Madan Lal Dhingra जैसे क्रन्तिकारी युवा जो हस्ते हस्ते अपने प्राण दे गए तुम्हारे और मेरे भविष्य के लिए उन्हें मालुम था की उनके फांसी चढ़ने से ही देश को आजादी नहीं मिलेगी। पर फिर भी उन्होंने अपने प्राणो की आहुति दी जानते हो किस लिए।
Madan Lal Dhingra जैसे क्रन्तिकारी ये सोचते थे की उनकी फांसी को देख कर इस देश के युवाओ का खून कुछ तो उबाल मारेगा ही उनके अंदर भी ये ज्वाला परचंड रूप लेगी ही और फिर ये देश भारत आजाद होगा और गुलामी की बेड़ियों को यहां के युवा तोड़ देंगे और भारतवर्ष आजाद हो जायेगा।
परन्तु आज देखा जाये तो अधिकतर युवाओ को टिक टोक , अश्लील फ़िल्में , फ़िल्मी भाँडो का अनुसरण उन्हें हीरो समझना , और आज के युवा तो अपना चरित्र भी काफी गिरा चुके है। ये लेख पढ़ कर हो सकता है किसी ऐसे युवा की आंखे खुल जाएँ जो गंदगी में घिरा हुआ हो।
मदनलाल का स्वास्थ्य अच्छा था नवयुवक और धनी घर का था भोग ऐश्वर्या का द्वार उसके लिए बंद नहीं था। किंतु उधर ना जाकर उसने मरने का खेल खेलने की धारणा कर ली।
Madan Lal Dhingra मदन लाल ढींगरा का जीवन परिचय
Madan Lal Dhingra | मदन लाल ढींगरा |
जन्म | 18 सितम्बर 1883 अमृतसर, पंजाब, भारत |
मृत्यु | 17 अगस्त 1909 पेंटविले जेल, लन्दन यू॰के॰ |
Madan Lal Dhingra का जन्म अमृतसर जिले में एक धनी खत्री घराने में हुआ था। पंजाब विश्वविद्यालय से एमबीए पास करके वह आगे पढ़ने के लिए इंग्लैंड गए थे। यह बहुत ही अच्छे और बुद्धिशाली छात्र थे। मदनलाल ढींगरा जी विद्यालय जाते ही श्यामजी कृष्ण वर्मा के भारतीय भवन में आने जाने लगे और वहां का सदस्य भी बन गए।
खुफिया पुलिस इनके पीछे लग गई खुफिया पुलिस की रिपोर्ट थी कि मदनलाल घंटों अकेले बैठकर पुरुषों का निरीक्षण करता रहता है।
इससे प्रतीत होता है कि वह कवि है या क्रांतिकारी है। मदनलाल इंडिया हाउस में रहकर यथार्थ में क्रांतिकारी बन गया एक दिन इसने अपने हृदय की व्यथा वीर सावरकर को वही इंडिया हाउस में सुनाई।
मदनलाल ढींगरा जी कुछ करने के लिए व्याकुल हो रहे थे वीर सावरकर ने ध्यान से इनकी ओर देखा और इनकी परीक्षा लेनी चाही वीर ढींगरा ने संकेत पाते ही हाथ भूमि पर रख दिया।
सावरकर ने उसके हाथ पर ऊपर से सुवा मार दिया सुआ हाथ के पार निकल गया खून की धार बह निकली। गुरु और शिष्य दोनों की आंखों में प्रेम के आंसू थे मदनलाल की आकृति पर प्रसंता और धैर्य था सावरकर ने सुआ निकाल कर फेंक दिया और मदनलाल को छाती से लगा लिया।
इसके पश्चात मदनलाल को कार्य सौंप दिया गया। वह चला गया और उसने सावरकर जी से मिलना जुलना कम कर दिया इतना ही नहीं वह जाकर कर्जन वायली की सभा में सम्मिलित हो गए और भारतीय भवन में आना-जाना एकदम छोड़ दिया।
यह देखकर भारतीय भवन के नवयुवक विधार्थी अत्यंत क्रोधित हुए और मदन को देशद्रोही कहने लगे। इस रहस्य को यह विधार्थी नहीं जानते थे श्री वीर सावरकर जी ने उन्हें कुछ समझा कर शांत करने का यत्न किया मदनलाल अपनी अग्नि परीक्षा की तैयारी में लगे हुए थे।
मदनलाल का स्वास्थ्य अच्छा था नवयुवक और धनी घर का था भोग ऐश्वर्या का द्वार उसके लिए बंद नहीं था। किंतु उधर ना जाकर उसने मरने का खेल खेलने की धारणा कर ली।
कर्जन वायली हत्याकांड कर्जन वायली का वध
1909 की बात है 1 जुलाई का दिन था इंपिरियल इंस्टीट्यूट में जहांगीर हाल में एक सभा थी। सर कर्जन वाइली भी वहां गए थे वह दो व्यक्तियों के साथ बातें कर रहे थे कि मदन लाल धींगरा ने पिस्तौल निकालकर उनके मुंह की ओर तान दी।
कर्जन साहब मारे डर के चीख उठे किंतु मदनलाल ने तुरंत दो गोलियां उसकी छाती में दाग दी जिससे उसके प्राण पखेरू उड़ गये। थोड़ी देर के पीछे धींगरा जी पकड़े गए
कर्जन वायली कौन था ढींगरा जी ने इसका वध क्यों किया
यह कर्जन वायली इन दिनों भारत के मंत्री का ऐडीकांग था। वह भारतीय विद्यार्थियों के पीछे खुफिया पुलिस लगाकर इस आंदोलन को कुचलने का यतन करता था उसके आचरण की आलोचना अनेक बार इंडिया हाउस में हो चुकी थी इसी कारण मदनलाल को यह वीरता पूर्ण कार्य करना पड़ा।
सभा में हाहाकार मच गया। मदनलाल को पकड़कर जेल में बंद कर दिया गया मुकदमा चला उस समय मदनलाल प्रसन्न और शांत चित्त थे। आनंद से अदालत की कार्यवाही देख रहा था। उसे उस समय मृत्यु का तनिक भी भय नहीं था।
उसने यह बयान दिया मैं मानता हूं कि मैंने उस दिन एक अंग्रेज का रक्त लेने की चेष्टा की यह उन निर्दयता भरी हत्याओं का एक अत्यंत तुच्छ सा बदला है जो भारत में सैकड़ों देशभक्त नव युवकों को अमानुष की फांसी तथा काले पानी की सजा दी जा रही है। अपनी आत्मा के अतिरिक्त इस कार्य में और किसी की सहमति नहीं थी।
अपने कर्तव्य बुद्धि के अतिरिक्त किसी के साथ षड्यंत्र नहीं किया एक जाति जिसको विदेशी संगीनों से दबाए रखा जा रहा है समझ लेना चाहिए कि वह बराबर ही युद्ध ही कर रही है। एक निशस्त्र जाति के लिए खुला युद्ध तो संभव है ही नहीं ।
मैं एक हिंदू होने के कारण समझता हूं यदि हमारी मातृभूमि के विरुद्ध कोई अत्याचार करता है तो वह ईश्वर का अपमान करता है। हमारी मात्रभूमि का जो हित है वही श्रीराम का भी हित है।
उसकी सेवा श्री कृष्ण की सेवा है मेरी भाँती एक हतभाग्य संतान के लिए जो वित तथा बुद्धि दोनों से हीन है इसके अतिरिक्त और क्या है कि मैं अपनी माता की यज्ञवेदी पर अपना रक्त अर्पण करूं।
भारतवासी इस समय केवल इतना ही कर सकते हैं कि वे मरना सीखे इसके सीखने का एकमात्र उपाय यह है कि वे स्वयं मरें। इसीलिए मैं मरूंगा और मुझे इस बलिदान पर गर्व है।
ईश्वर से केवल मेरी यही प्रार्थना है कि मैं फिर उसी माता के गर्भ में उत्पन्न हूं और फिर उसी पवित्र उद्देश्य के लिए अपने प्राणों को अर्पण कर सकूं।
यह तब तक के लिए चाहता हूं जब तक कि वह विजय तथा स्वाधीन ना हो जाए ताकि मानव जाति का कल्याण हो और ईश्वर की महिमा का विस्तार हो सके “वंदे मातरम”।
17 अगस्त 1909 को फांसी के तख्ते पर हंसते-हंसते मदनलाल चढ़ा और अपना बलिदान देकर अमर होगए उनकी लाश को जेल के अंदर ही दफना दिया जिस दिन उस वीर क्रन्तिकारी को फांसी दी गई उस दिन इंग्लैंड के विद्यार्थियों ने उपवास रखा वह जेल के बाहर इकट्ठे हुए और उसका हिंदू विधि से संस्कार करने की मांग की परंतु यह मांग अस्वीकार कर दी गई दुष्ट अंग्रेजो के द्वारा।
ऐसे थे हमारे वीर मदनलाल ढींगरा जी दोस्तों ऐसे अनेकों वीरों ने इस भारत भूमि के लिए इस मातृभूमि के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।
परंतु अफसोस तो इस बात का होता है कि आज का युवा टिकटोक चलाता है अश्लील गाने सुनता है गलत संगति में पड़ा है उसको पता ही नहीं कि धर्म क्या है राष्ट्र क्या है कितनों ने तुम्हारी रक्षा के लिए तुम्हें आजादी में सांस जीने की स्वतंत्रता दिलाने के लिए अपने प्राणों के बलिदान किए हैं और आज का यह हिंदू युवा अपने उन वीरों के बलिदान को व्यर्थ कर रहा है।
ओ३म् नमस्ते जी
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