बटुकेश्वर दत्त आज़ादी के बाद क्या हुआ इनके साथ

बटुकेश्वर दत्त का संघर्ष और छोटी जीवनी

बटुकेश्वर दत्त एक महान क्रांतिकारी जो भगत सिंह के मित्र थे जिन्होंने भगत सिंह के साथ मिलकर असेंबली में बम फेंका था।

क्रांतिकारी संगठन हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन संगठन के सदस्य थे। बटुकेश्वर दत्त एक ऐसे महान क्रांतिकारी जिन्होंने तन मन धन से भारत वर्ष की सेवा की जब यह भारत गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था

उस समय उन्होंने अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया। आज इस लेख में आप बटुकेश्वर दत्त जैसे क्रांतिकारी के बारे में इतनी महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे जो कि अधिकतर भारत के युवक युक्तियां नहीं जानते हैं जिनके बारे में उन्हें जरूर से जरूर जाना चाहिए।

जो भी देश भक्त इस लेख को पढ़े वो इसे दुसरो के साथ सजहन अवश्य करें। ओ३म्

बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह
बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह

बटुकेश्वर दत्त जयंती

बटुकेश्वर जी का जन्म कानपुर में 1908 में हुआ था। यदि आप wikipedia hindi पर उनके जन्म की तिथि खोजेंगे तो 1910 मिलता है लेकिन जो तिथि मैंने बताई है यह मैंने स्वामी ओमानंद जी ने जो अपनी पुस्तक में लिखी है मैंने वही जनम तिथी लिखी है। दत्त जी के परिवार वाले बंगाली थे।

बटुकेश्वर दत्त का जीवन परिचय

बटुकेश्वर जी बचपन से ही बहुत ही अच्छे खिलाड़ी भी रहे थे और आपको बता दूं कि यह पढ़ लिखकर क्रांतिकारी कार्य में भाग लेने के लिए रंगमंच पर आए थे।

1924 ईस्वी में आपका वीर भगत सिंह जी से परिचय हुआ। एक बार गंगा में बाढ़ आ जाने से जनता को बड़ी हानि हो रही थी उस समय आपने और भगतसिंह ने पीड़ित जनों की खूब सेवा की इस प्रकार आप दोनों का सर्वत्र सम्मान होने लगा था।

बटुकेश्वर दत्त और भगतसिंह का असेम्ब्ली में बेम फेकना

1924 में केंद्रीय विधानसभा में औद्योगिक विवाद का बिल पास हो रहा था। इस बिल से मजदूरों की हानि थी एच. एस. आर. ए. ( हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन ) के सदस्यों ने इसका विरोध करने के लिए एक योजना तैयार की जब यह बिल पास हो उस समय इसका विरोध बम फेंककर किया जाए और साथ ही यह भी महत्वपूर्ण निश्चय किया कि जो सदस्य इस कार्य के लिए नियुक्त किए जाएंगे वे यहां से भागेंगे नहीं बल्कि स्वेच्छा से गिरफ्तार होकर अदालत में बयान द्वारा यह स्पष्ट करेंगे कि यह कार्य किस लक्ष्य को लेकर किया।

यह निश्चय कोई साधारण नहीं था। क्योंकि इसका अर्थ यह था कि जानबूझकर मृत्यु का आलिंगन। इसमें मनोवैज्ञानिकों का कथन है कि एक अकस्मात जोश में आकर प्राण उत्सर्ग करना सरल है किंतु जानबूझकर और विवेक के साथ जो व्यक्ति बलिदान की वेदी पर जाने का साहस करता है सच्चा वीर तो वही है।

इस कार्य को करने के लिए भगत सिंह जी के साथ कभी जयदेव कपूर का कभी राजगुरु शिव राम जी का नाम आया परंतु उनके मित्र विजय कुमार और शिवराम जी ने भगत सिंह के जाने का विरोध कर दिया इधर श्री बटुकेश्वर दत्त को जब बम फेंकने की सूचना मिली तो समिति को आपने कहा कि दल के साथ मेरा पुराना संबंध होते हुए भी मुझे आपने इस प्रकार कार्य करने का शुभ अवसर नहीं दिया और खिन्न होकर विरोध करते हुए यह कहा कि शीघ्र ही किसी कांड में सक्रिय कार्य करने का अवसर नहीं दिया तो हम संगठन से किसी भी प्रकार का कोई संबंध ना रखेंगे।

तब समिति ने आपको तथा विजय कुमार सिन्हा को इस कार्य के लिए नियुक्त किया इस बैठक में श्री सुखदेव जी ना आ सके थे अतः आपको सूचना पुनः दी तब दूसरी बैठक में उपस्थित हुए श्री सुखदेव जी और भगत सिंह जी का घनिष्ठ संबंध था सुखदेव ने भगत सिंह को एकांत में बुलाकर कहा कि असेंबली में बम फेंकने के लिए तुम्हें जाना था दूसरे आदमियों को भेजने का निश्चय क्यों किया तब आप ने उत्तर दिया कि समिति का निर्णय है कि संगठन के लिए मुझे पीछे रहना आवश्यक है।

तब सुखदेव ने कड़ा विरोध किया और कहा यह सब बकवास है तुम्हारे व्यक्तिगत मित्र की स्थिति से मैं देख रहा हूं कि तुम अपने पांव पर कुठाराघात कर रहे हो तुम सदा इस प्रकार बच नहीं सकते 1 दिन आपको भी अदालत के सम्मुख आना पड़ेगा।

इस प्रकार के वचन सुनकर भगत सिंह ने कहा कि मैं बम फेंकने अवश्य जाऊंगा इस प्रकार भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त का जाना निश्चय हुआ।

8 अप्रैल सन 1926 को बिल पास होने के समय आपने भगत सिंह के बम फेंकते ही दूसरा बम फेंका समस्त भवन धुएं से भर गया जहां बम गिरे थे वहां बैंच टूट गई भगदड़ मच गई सदस्य और दर्शक सब जान बचाकर भागे उस स्थान पर केवल तीन चार व्यक्ति उपस्थित थे।
1, अध्यक्ष विट्ठल भाई पटेल
2, मोतीलाल नेहरू
3, पंडित मदन मोहन मालवीय तथा जिन्ना

सर शूटर घोषणा करते समय खड़े थे वह वैसे ही खड़े रह गए वीर भगत सिंह ने सर शूटर पर गोली चलाई किंतु वह डेस्क के नीचे छुप गया इसके बाद सिंह और दत्त ने गगनभेदी नारे लगाए इंकलाब जिंदाबाद साम्राज्यवाद का नाश हो दुनिया के मजदूर एक हो साथ ही आप दोनों ने लाल रंग के घोषणा पत्र भी भवन में फेंक दिए यह पत्र अंग्रेजी में थे उनमें प्रथम पंक्ति इस प्रकार थी भैरों को सुनाने के लिए विस्फोट के समान ऊंचे ऊंचे शब्दों की आवश्यकता है।

इस समय भी यदि आप भागना चाहते तो भाग सकते थे परंतु यह कार्य आपके कार्यक्रम के प्रतिकूल था लगभग आधे घंटे के बाद में पुलिस पकड़ने के लिए आई किंतु उन्हें भी पकड़ने का साहास ना हुआ इस पर आप दोनों वीरों ने गोली से भरी बंदूक दूर फेंक दी और आत्मसमर्पण कर दिया।

इस समय इन नव युवकों के मुख पर ना कोई उत्तेजना थी ना भय था। वह एक स्वाभाविक मुस्कुराहट के साथ अपने कार्य को सुचारू रूप से कर लेने का संतोष प्रकट कर रहे थे। आप दोनों को बंदी करके कोतवाली में प्रथक प्रथक कोठियों में बंद किया गया।

सीआईडी अधिकारी ने आपसे इस षड्यंत्र के विषय में कुछ पता लगाना चाहा किंतु उनको इसमें कोई सफलता ना मिली।

इधर पुलिस वर्ग ने इस कांड के पीछे षड्यंत्र का पता लगाने का सिर तोड़ प्रयत्न किया परंतु कहीं कोई सूत्र ना मिल सका यहां तक कि दिल्ली के सभी धोबियों को बुलाया गया कि इनके कपड़े किसने साफ किए हैं जितने भी हाथ के प्रेस थे उनका भी निरीक्षण किया क्योंकि जो पर्चे बांटे गए थे उनका ज्ञान पुलिस करना चाहती थी कि कहां छपे हैं।

इस घटना ने देश भर को हिला दिया अंग्रेज सरकार की पुलिस घबरा गई दिल्ली में कोलकाता से तत्काल विशेष पुलिस बुलाई गई उस समय दिल्ली में सभी दूसरे प्रांतों की राजधानियों तक टेलीफोन और तार सरकारी संदेशों के लिए रिजर्व कर लिए गए। उस समय दिल्ली स्थित “स्टेट्समैनसंवानदाता लाला दुर्गादास जी ने बम कांड का समाचार टेलीफोन या तार द्वारा कोलकाता भेजना चाहा परंतु समाचार भेजने के सभी साधन सरकारी काम के लिए थे।

उस समय लालाजी ने पत्रकार की विशेष सूझ दिखाई आपने यह समाचार “स्टेट्समैन” के लंदन कार्यालय को भेजा वहां से यह समाचार वायरलेस द्वारा कोलकाता कार्यालय में भेजा गया।

जिस समय “एसोसिएटेड प्रेस ऑफ इंडिया” दोबारा इस घटना का समाचार कोलकाता के दूसरे पत्रों को मिला उस समय स्टेट्समैन का विशेषांक बाजार में बट रहा था।

जेल में इन लोगों पर कठोरता का बर्ताव प्रारंभ हो गया इन दोनों को एक दूसरे से बहुत दूर बिल्कुल तंग और गंदी कालकोठरी ओं में बंद कर दिया गया था और नित्य अधिकारी वर्ग इनके पास जाकर नेताओं के वक्तव्य दिखाकर उनसे कहते कि समस्त देश तुम्हारे कार्यों की निंदा करता है इस प्रकार नैतिक साहस भंग करने की चाल चल रहे थे।

यही नहीं दूसरी चाल यह चली कि उन्होंने समाचार पत्रों में बटुकेश्वर दत्त के सरकारी गवाह हो जाने का समाचार दिया इससे जनता में बेचैनी फैली भगत सिंह को भी इससे आघात पहुंचा।

परंतु भगत सिंह ने अपने साहस में लेश मात्र भी परिवर्तन ना आने दिया थोड़े दिन बाद मिथ्या प्रचार का भंडाफोड़ हुआ पकड़े जाने के 2 सप्ताह बाद दोनों युवकों की शिनाख्त कराई गई इनकी शिनाख्त कराने वाले कुछ भारतीय और कुछ अंग्रेज थे यह कार्यवाही प्रथम श्रेणी के न्यायालय में जनाब अब्दुल समद के सामने हुई।

न्यायालय में नाट्य शाला

सरकार ने अपनी पूरी तैयारी के पश्चात 7 मई सन 1929 को सिंह और दत्त को अदालत में उपस्थित किया जनता का कोई प्रदर्शन ना हो इस भय से अदालत की कार्यवाही दिल्ली जेल में हुई मैजिस्ट्रेट मिस्टर सीएफबी पुल न्याय करता था।

इन दिनों जेल के भीतर व बाहर पुलिस का कड़ा पहरा था। जेल में केवल अभियुक्तों के संबंधी पत्र प्रतिनिधि तथा सफाई वकीलों को ही आने की आज्ञा दी जाती थी।अब इन दोनों वीरों को अदालत में लाया गया तब आते ही दोनों ने बड़े जोरों से इंकलाब जिंदाबाद साम्राज्यवाद का नाश हो इत्यादि नारे लगाए।

इसके पश्चात अदालत ने बताया कि पुलिस ने दफा 307 हत्या करने का प्रयत्न और विस्फोटक कानूनन की धारा 3 लगाई है।

अभियोग के साक्षियों के 2 दिन तक बयान चलते रहे तीसरे दिन मैजिस्ट्रेट ने आप दोनों को अपनी सफाई पेश करने के लिए कहा किंतु आपने बयान देने से इनकार किया और कहा कि हमें जो कुछ कहना है वह सेशन जज की अदालत में कहेंगे इस पर मैजिस्ट्रेट ने सेशन जज के सपोर्ट कर दिया।

तारीख 4 जून 1929 को दिल्ली जेल में ही सेशन जज की अदालत लगी इस समय भी पहरा और देखरेख उसी प्रकार सख्त थी नीचे की अदालत में जो बयान सरकारी गवाहों ने दिए थे फिर बयान यहां दे दिए।

इसके पश्चात सिंह और दत्त ने संयुक्त वक्तव्य दिया वह बयान अंग्रेजी में दिया गया था। जिस किसी ने यह बयान पढ़ा या सुना उसकी आंखें खुल गई उनके विषय में जो झूठी अज्ञानता वश अफवाहें फैल गई थी उनका निराकरण हो गया।

मानव का अविच्छेद् अधिकार

विप्लव-क्राँति मनुष्यता का अविच्छेद् श्रधिकार है । स्वतन्त्रता का अनिद्रिष्ट जन्मसिद्ध अधिकार है। श्रमजीवी ही समाज का सच्चा घुरीण है । इन आदर्शों और विश्वासों के लिए हम प्रत्येक वेदना. को जो हमें दी जायेगी आदर से स्वागतपूर्वक आलिंगन करेंगे इस विप्लव की बलिवेदी में अर्पित करने के लिए मैं अपनी नौजवानी देने को उद्यत हूं।

क्योंकि इतने महान आदर्श के लिए किसी भी प्रकार का बलिदान अत्यधिक नहीं कहा जा सकता। हम सन्तुष्ट हैं। हम क्रांति के अवतार की प्रतीक्षा कर रहे हैं । क्रान्ति युग युग जीवे ।

आप दोनों ने बम फेंकने के श्रपराध को तो स्वीकार किया था किन्तु हत्या करने के प्रयत्न का जो आरोप लगाया था इसके लिए सफाई की ओर से कुछ गवाहों की श्रावश्यकता थी । अत: पं० मदन- मोहन मालवीय आदि सुप्रतिष्ठित महानुभावों ने न्यायालय में आकर साक्षी दी कि अभियुक्तों ने सभा भवन में आकर जो आचरण किया था उससे स्पष्ट प्रतीत होता है कि उनका किसी के प्राण लेने का विचार नहीं था|

इसके पश्चात्‌ जज महोदय ने अ्रफसरों की सम्मति पूछी तब प्रथम ने कहा कि दांनों
अ्रभियुक्त दोनों धाराओं में निर्दोष हैं। दूसरे ने दोनों को हत्या की चेष्टा करने में निर्दोष श्रौर विस्फोट में दोषी बताया | तीसरे ने भगतसिंह को दोनों धाराश्रों में दोषी और दत्त को ह॒त्या सम्बन्धी धारा में निर्दोषी बताया |

सेशन जज ने चौथे अफसर की सम्मति प्रकट करते हुए ता० १२ जून १६२६ को दत्त
और सिंह को दोनों धाराओं का भ्रपराधी घोषित करते हुए आजन्म कालापानी की सजा सुनाई ।

सजा सुनते ही दोनों वीरों ने क्रांतिकारी गगन भेदी नारों से इसका स्वागत किया। आप दोनों को आजीवन कारावास की सजा देकर भगतसिह को पंजाब की मियांवाली जेल में और बटुकेश्वर दत्त को लाहौर की सैन्ट्रल जेल में भेज दिया।

वहां जैलों में आ्रापके साथ विल्कुल साधारण कैदियों जैसा निकृष्ट व्यवहार किया तब आप दोनों ने इसके विरुद्ध आ्रावाज उठाई। परन्तु इस नौकरशाही जमाने में कौन सुनता । अन्त में कोई चारा न देखकर १५ जून से अनशन प्रारम्भ कर दिया । अ्रब
दोनों की हालत दिन प्रतिदिन खराब होने लगी । इधर जनता में खलबली मच गई ।
पंजाब एवं बंगाल में आपके प्रति सहानुभूति प्रदर्शित करने के लिए ३० जून को सिंह और दत्त का दिवस मनाया ।

इधर पंजाव की पुलिस ने साण्डर्स हत्याकाण्ड तथा श्रन्य अनेक क्रांतिकारी कार्यों
के अपराध में अनेक नवयुकों के साथ आप दोनों को भो फंसाकर षड्यन्त्र केस चलाने की तैयारी कर दी।

कुछ दिन व्यतीत हो जाने पर भगतसिह और बटुकेश्वर दत्त को लाहौर षड्यन्त्र का अभियुवत कर दिया । बहुत कड़े पहरे में मियांवाली जेल से भगतसिह को लाहौर लाया गया । इस समय आप दोनों का अनशन चल रहा था | यहां जो अन्य अभियुक्त थे उन्होंने भी अनशन प्रारम्भ कर दिया ।

परन्तु सरकार अन्धी व बहरी बनी रही। अदालत में आपको अनशन अवस्था में ही ले जाया जाता । १७ ता० को इस मामले की सुनाई हुई। उस दिन भगतसिंह कुछ बोल पड़ा, इस पर अखबार व सम्बन्धियों का मिलना बन्द हो गया । इसका स्वागत अभियुक्तों ने राष्ट्रीय नारों से किया |

जैसे-जैसे दिन व्यतीत हुए अनशनकारियों की दशा चिंताजनक होती गई । अधिकारी वर्ग तो अनशन तोड़ने का प्रयत्न करते ही थे परन्तु बाहर से गणेशशंकर विद्यार्थी, जवाहरलाल नेहरू ने भी अनशन तुड़वाने का प्रयत्न किया परन्तु प्रयत्न निष्फल हुआ ।

अन्त में यतीन्द्रनाथ की अनशन के कारण मृत्यु हो गई। फिर क्या था दूसरे दिन कमेटी बुलाकर जेल के नियमों में सुधार कर दिया | इन अनशनों में भगतसिह ने ११५ व बटुकेश्वर दत्त ने ७१दिन का अ्रनशन किया था।

चन्द्रशेलर आजाद, भगवती चरण, इंद्रपाल, यशपाल आदि ने आपको जेल से छुड़ाने का प्रयत्न भी किया । किन्तु वह इसमें सफलता प्राप्त न कर सके ।

बटुकेश्वर दत्त फैमिली

बटुकेश्वर दत्त जी के माता पिता फैमिली बंगाल से थी

पब्लिक सेफ्टी बिल 1928 क्या था

पब्लिक सेफ्टी बिल एक दमनकारी बिल था जिसे अंग्रेज सरकार दिल्ली मैं पास करवाना चाहती थी।

इसी मनमानी को रोकने के लिए भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने असेंबली में बम फेंकने का निर्णय लिया था। असेंबली बम कांड के नाम से जानते हैं सभी।

बटुकेश्वर दत्त की मृत्यु कैसे हुई

अब हम यहां बात करेंगे आजादी के बाद की क्योंकि यह बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी है जो कि हर किसी को मालूम होनी चाहिए कि आखिरकार एक ऐसे महान क्रांतिकारी के साथ इस देश ने क्या सलूक किया कैसी पीड़ा में दत्त जी को अपना जीवन जीना पड़ा।

बटुकेश्वर दत्त जी ने देश की आजादी के लिए 15 साल से ज्यादा का समय जेल में बिताया था और जब यह भारत आजाद हुआ तो उनके पास में कोई रोजगार भी नहीं था अपना जीवन चलाने का कोई साधन भी नहीं था तब उन्होंने सिगरेट बेचकर अपना गुजारा किया जगह-जगह सड़कों पर सिगरेट बेचा करते थे।

कुछ समय बाद बटुकेश्वर दत्त जी ने डबल रोटी और बिस्कुट बनाने का एक छोटा सा व्यवसाय शुरू किया था। लेकिन इसमें उन्हें काफी ज्यादा घाटा झेलना पड़ा जिसके कारण यह व्यवसाय उनका बंद हो गया।

पटना में बसों के लिए नौकरी निकली थी और जब दत जी वहां के कमिश्नर के सामने पेश हुए तो उनसे कहा गया कि आप अपना स्वतंत्रता सेनानी होने का प्रमाण पत्र लेकर आइए।

फिर जब यह बात उस समय के राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद जी को पता चली तब उन्होंने बटुकेश्वर दत्त जी से क्षमा मांगी और जो वह कमिश्नर थे उन्होंने भी क्षमा मांगी लेकिन ये सब दिखावा ही था बाद में शमा मांगते रहो । सोचने वाली बात ये है की इन शमाओं के बाद भी उनकी आर्थिक जीवन में कोई सुधर नहीं आया इसीलिए में इन शमाओं को सिर्फ ढकोसला ही मानता हूँ।

1964 में वह बीमार पड़ गए थे फिर उन्हें पटना के किसी अस्पताल में भर्ती करवाया गया पर आपको जानकर अचम्भा होगा कि वहां उन्हें एक बिस्तर तक नहीं मिला था।

बटुकेश्वर से अस्पताल में मिलने आईं थीं भगत सिंह की माँ

जब बटुकेश्वर दत्त जी अस्पताल में भर्ती थे तो उसने भगत सिंह की माता जी उनसे मिलने आई थी।

बटुकेश्वर दत्त जी को टीबी का रोग था बाद में पता चला कि उनको कैंसर भी हो गया है और फिर बाद में सरकारों ने नेताओं ने प्रयास किया इनका इलाज अच्छी जगह किया जाए लेकिन जब तक देर हो चुकी थी। मतलब इस हिंदुस्तान में सभी कार्य देर से ही किये जाते हैं वो भी दिखावे के लिए।

अभी जब में ये सब लिख रहा हूं तो मेरी आंखो में आंसू आरहे है कई साल पहले ये सब पहली बार सुना था उसदिन भी आंखों में आसूं आए थे दुख तो बहुत होता है ये सब जानकार की एक महान क्रन्तिकारी के साथ उस समय के भारतीयों ने कितना घटिया व्यवहार किया।

उस समय के पंजाब के मुख्यमंत्री बटुकेश्वर दत्त जी से मिलने के लिए पहुंचे थे तब बटुकेश्वर दत्त जी ने आंखों से टपकते आंसुओं के साथ कहा कि मेरी अंतिम इच्छा यही है कि मेरा अंतिम संस्कार मेरे मित्र भगत सिंह की समाधि के पास में ही किया जाए।

बटुकेश्वर दत्त अपने परिवार के साथ

फिर वह दिन भी आ पहुंचा जब बटुकेश्वर दत्त जी इस दुनिया को छोड़ कर चले गए 20 जुलाई 1965 को उन्होंने अपना वह शरीर त्याग दिया और फिर उनकी इच्छा का मान रखते हुए उनका अंतिम संस्कार हुसैनीवाला में सुखदेव, भगत सिंह, राजगुरु की समाधियों के निकट किया गया।

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