भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त का अदालत में दिया ब्यान

भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त का संयुक्त वक्तव्य

भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने अदालत में जो अपना बयान दिया था उसी को पूरा का पूरा यहां लिखा गया है जिससे कि आप इसको पढ़ें और जान पाए भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ।

7 मई 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को न्यायालय में उपस्थित किया गया असेंबली में बम फेंकने के अपराध में इन पर पुलिस ने धारा 307 हत्या करने का प्रयास और विस्फोटक कानून की धारा 3 लगाई।

जनता का कोई प्रदर्शन ना हो इस लिए न्यायालय की सभी कार्यवाही दिल्ली जेल में ही हुई मजिस्ट्रेट थे दिल्ली के एडिशनल मैजिस्ट्रेट मी एफबी पुलो । पुलिस का सख्त पहरा था पुलिस इतनी डरी हुई थी कि प्रत्येक वस्तु और प्रत्येक व्यक्ति को शंका की दृष्टि से देखती थी।

जब भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त दोनों अभियुक्तों को न्यायालय में उपस्थित किया गया तब उन्होंने बड़े उच्च स्वर से इंकलाब जिंदाबाद साम्राज्यवाद का नाश हो के नारे लगाए।

2 दिन तक गवाहों के बयान होते रहे तत्पश्चात भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को सफाई का ब्यान देने को कहा तो उन्होंने निषेध कर दिया और कहा कि हमें जो कुछ कहना है सेशन जज की अदालत में ही कहेंगे।

4 जून 1929 से दिल्ली जेल में ही सेशन जज की अदालत लगी सरकारी गवाहों ने पूर्वत अपने वक्तव्य दोरहा दिए उनके पश्चात भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने एक संयुक्त वक्तव्य दिया यह वक्तव्य महत्वपूर्ण है क्योंकि क्रांतिकारी समिति ने जब बम फेंकने का निश्चय किया था तब यह भी निश्चय किया था कि जो लोग बम फेंके वे न्यायालय में ऐसा वक्तव्य दें कि जिससे हमारे आंदोलन के उद्देश्य का स्पष्टीकरण हो जाए।

इसीलिए इस कार्य के लिए वीर शिरोमणि भगत सिंह को चुना गया और भगत सिंह ने भी अपने साथी राजगुरु को बहुत आग्रह करने पर भी ना लेकर बटुकेश्वर दत्त को ही लिया उस समय वक्तव्य अंग्रेजी में दिया गया था यहां हम हिंदी में लिखते हैं।
वेदव्रत संपादक

हम लोग संगीन जुर्मों के अभियुक्तों की हैसियत से उपस्थित हैं और इस मौके पर हम अपने आचरण की सफाई देते हैं (हमारे आचरण के संबंध में) निम्नलिखित प्रश्न उपस्थित होते हैं।

1 . पहला प्रश्न यह है कि क्या असेंबली भवन में बम फेंके गए थे? और फेंके गए थे तो क्यों?

2 . दूसरा सवाल यह है कि नीचे की अदालत ने हम पर जो फर्द जुर्म लगाया है क्या यह सत्य है अथवा नहीं?

पहले प्रश्न के उत्तर में हमारा जवाब है कि हां असेंबली में बम फेंके गए थे किंतु अपने आपको चश्मदीद गवाह कहलाने वालों मैं से कुछ गवाहों ने झूठा बयान दिया है और क्योंकि हम अपनी कार्य तत्परता को उस हद तक जहां तक कि यह जाती है और जिस रूप में कि वह है अस्वीकृत नहीं करते इसलिए उन गवाहों के बारे में हमारा यह बयान जिस लायक यह है वैसा ही समझा जाए।

उदाहरण के तौर पर हम यह कह सकते हैं कि सार्जेंट टेरी की यह गवाही कि उसने हम में से एक आदमी के हाथ में से पिस्तौल छीनी सरासर बनाई हुई झूठ है क्योंकि जिस समय हम ने आत्मसमर्पण किया था उस समय हम में से किसी के पास भी पिस्तौल न थी। दूसरे गवाहों ने जिन्होंने हमारे द्वारा बम फेंके जाते देखने का बयान दिया है सरासर झूठ बोलने में जरा भी संकोच नहीं किया है।

जो लोग कानूनी स्वछता और निष्पक्ष न्याय दान के लिए प्रयत्नशील हैं उनके लिए यह ( गवाहों की अदालत बयानी) स्वतः एक नैतिक सबक है। इसी के साथ ही हम सरकारी वकील की निष्पक्षता और अदालत की इस वक्त तक कि न्याय परख के मनोभाव को स्वीकृत करते हैं।

भगत सिंह बम क्यों फेंके गए

पहले प्रशन के दूसरे अंश के उत्तर देने में हमें मजबूरन कुछ विस्तार की शरण लेनी पड़ती है और इस प्रकार हमें अपने कार्य के प्रेरक भावों और उन सब परिस्थितियों का पूर्ण और नितांत स्पष्ट निरूपण करना पड़ता है जिससे धीरे-धीरे यह बम दुर्घटना ऐतिहासिक कांड में परिणित हो गई।

कुछ पुलिस अफसरों ने हमसे जेल में मुलाकात की थी और उन्होंने हमसे कहा था कि लॉर्ड इरविन ने बड़ी व्यवस्थापिका सभाओं के संयुक्त अधिवेशन में भाषण देते हुए इस घटना को एक ऐसी बात बतलाया था जो किसी व्यक्ति के प्रति नहीं किंतु एक संस्था के प्रति की गई थी।

जब हमने यह सुना तब हमने बहुत शीघ्र ही यह बात मान ली कि इस घटना का सच्चा महत्व बहुत ठीक तौर पर समझ लिया गया है हम मनुष्यता के प्रेम में किसी से भी पीछे नहीं हैं और किसी व्यक्ति के खिलाफ घृणा भाव रखना तो दूर रहा हम मनुष्य जीवन को वास्तविक रूप में पवित्र समझते हैं।

हम ना तो उस प्रकार के खिलौने कुकृत्य के करने वाले एवं देश के कलंक हैं जैसा कि अध कचरे साम्यवादी दीवान चमनलाल हमें कह चुके हैं तथा ना हम ऐसे पागल ही हैं जैसा कि लाहोरी ट्रिब्यून और कुछ अन्य लोगों ने हमें बताया है।

संस्था के खिलाफ आवाज बुलंदी

हम बहुत नम्रता पूर्वक यह दावा करते हैं कि हम कुछ नहीं हैं सिवाय इसके कि हम इतिहास के गंभीर विधार्थी हैं और अपने मुल्क की अदालत को देखने वाले हैं तथा मानवीय आकांक्षाओं का अनुभव करने वाले हैं और हम पाखंडी तथा मक्कारी से नफरत करते हैं।

हमारा यह व्यवहारिक विरोध प्रदर्शन एक ऐसी संस्था के खिलाफ था जो अपने जन्म काल ही से ना केवल निकम्मापन प्रकट करती रही है बल्कि शैतानी कर सकने की अपनी अत्यधिक शक्ति का प्रमाण भी दे दी रही।

जो जो हमने इस पर गंभीरता पूर्वक विचार किया त्यों त्यों हम पर इस विश्वास की गहरी छाप पड़ती गई कि यह संस्थान दुनिया को भारतवर्ष की बेचारगी और उसकी बेज्जती दिख लाने के लिए ही कायम है वह संस्था गैर जिम्मेदार और तानाशाही शासन के विकट प्रभुत्व का प्रतिरूप है।

जनता के प्रतिनिधियों ने बार-बार राष्ट्र की मांग पेश की और उन राष्ट्रीय मांगों का अंतिम स्थान कूड़े की टोकरी ही रहा है असेंबली द्वारा पास किए गए पुनीत प्रस्ताव नगण्य समझ कर पैरों तले कुचले गए हैं।

और वह भी कहां? यहां इस नामधारी भारतीय पार्लियामेंट के भवन में दमनकारी और निरंकुश कानूनों को तोड़ने के संबंध में किए गए प्रस्ताव निहायत नववा खाना हिकारत की नजर से देखे गए हैं और सरकार के वे कानून और प्रस्ताव जिनको जनता के चुने हुए मेंबरों ने आज अस्वीकरणीय समझकर ठुकरा दिया था सिर्फ एक कलम के शोशे से ज्यों के त्यों रहने दिए गए।

थोथा दिखावा

थोड़े में बहुत परिवर्तन करने के बाद भी हम इस संस्था के अस्तित्व की उपादेयता को समझने में नितांत असमर्थ रहे हैं। बावजूद इस तमाम शान शौकत और तड़क-भड़क के जो कि करोड़ों मेहनतकश लोगों की कष्ट प्राप्त है दौलत के बल पर कायम रखी जाती है हम यह समझते हैं कि यह संस्था एक ढोल की पोल का नजारा और शैतानियत से भरा एक बहाना मात्र है।

इसके साथ ही हम यह नहीं समझ पाए हैं कि उन सार्वजनिक नेताओं के मनोभावों को जो जनता का समय और धन भारतवर्ष की निरुपाय गुलामी के इस नाटकीय प्रदर्शन के लिए खर्च करते हैं, हम इन सब बातों पर गौर करते रहे हैं और साथ ही हमने गौर किया है मजदूर दल के नेताओं की गठरी भर गिरफ्तारी पर।

ट्रेड डिस्प्यूट्स बिल का प्रारंभ जिस समय हमें असेंबली में खींचकर ले आया उस समय हमने उस बिल की प्रगति को देखा और उस पर किए गए वाद विवाद को भी सुना यह सब देखने सुनने के पश्चात हमारा यह विश्वास दृढ़ हो गया है कि यह संस्था तो सब कुछ हड़प जाने वालों की गला घोटू ताकत का भय त्रस्त कारी स्मारक और निसहाय मेहनतकशों की गुलामी का चिन्ह है।

जगाने के लिए बम जरूरी है

अंत में तमाम देशभर के प्रतिनिधियों के आदरणीय मस्तकों पर अमानुष्य और बर्बरता पूर्ण कानून की अपमानजनक गाज गिराई गई और इनका नतीजा यह हुआ कि भूखों मरने वाले और बमुश्किल तमाम अपना पेट पालने वाले लोग अपनी आर्थिक दशा को सुधारने में प्रारंभिक सतत्व और एकमात्र उपाय से वंचित कर दिए गए।

कोई भी आदमी जिसने हमारी तरह इन बेजुबान मनमानी दिशा में हाथ दिए जाने वाले मजदूरों के प्रति तादात में भाव अनुभव किया है संभवत इस दृश्य को विचलित चित से नहीं देख सकता था।

कोई भी आदमी जिसके दिल से खून भरता है उन आदमियों के लिए जिन्होंने लूट खसोट करने वालों के आर्थिक भवन के निर्माण के लिए अपना जीवन रक्त दे दिया है और लूट खसोट करने वालों की श्रेणी में इस मुल्क में यह सरकार सबसे बड़ी दोहन करता है।

अपनी आत्मा और इस निर्दय प्रहार ने हमारे हृदय के भीतर से वेदना का वह आक्रोश जबरदस्ती बाहर खींच लिया इसलिए एक समय गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी के कानून सदस्य स्वर्गीय श्री एस आर दास के उन शब्दों को ध्यान में रखकर जो उनके उस प्रसिद्ध पत्र में प्रकाशित हुए थे जिसे उन्होंने अपने पुत्र को लिखा था।और जिन शब्दों की मंशा यह है कि इंग्लैंड को अपने सुख स्वप्न से जगाने के लिए बम जरूरी है इन शब्दों पर विचार करके हमने असेंबली की फर्श पर बम फेंक दिया और यह सिर्फ इसलिए किया कि हम उन आदमियों की ओर से जिनके पास अपने हृदय को चीरने वाली वेदना को प्रकट करने का कोई साधन नहीं है घोर विरोध प्रदर्शन कर दें।

हमारा एकमात्र उद्देश्य यह था कि हम लोग बहरो के कान खोल दें और बेपरवाहों को अन्यमनस्कों को यथासमय चेतावनी दे दें ।

सतयुग अहिंसा के काल का अंत

औरों ने भी इस दशा का इतने ही ज्वलंत रूप में अनुभव किया है जितना कि हमने। और भारतीय मनुष्यों के महासागर की दिखाऊ अक्षुभधता के भीतर से एक जबर्दस्त तूफान फट पड़ने को है।

हमने तो सिर्फ खतरे का सूचक झंडा टांग दिया है सिर्फ उन लोगों के देखने के लिए जो भागे जा रहे हैं बिना यह विचार किए कि आगे बडा भारी खतरा है हमने तो सिर्फ यह सूचना भर दी है कि सतयुगी अहिंसा के दिन लद गए।

उठती हुई पीढ़ी अहिंसा के निकम्मेपन का इतनी अच्छी तरह अनुभव कर चुकी है कि अपने उस अनुभव में अब उसे संदेह की छाया मात्र भी नहीं रह गई है मनुष्यों के प्रति हमारी हार्दिक सह इच्छा है और प्रेम से प्रेरित होकर हमने सावधान कर देने का यह तातसीकर इसलिए अख्तियार किया है कि बेशुमार कष्ट और वेदना टाली जा सकें।

हमने पहले के पैराग्राफ में सतयुगी अहिंसा शब्द का इस्तेमाल किया है इस शब्द की व्याख्या करना आवश्यक है जब बल प्रयोग आक्रांत करने के लिए किया जाता है तब हिंसा कहलाता है और इस कारण उसका नैतिक मंडन नहीं किया जा सकता किंतु जब बल का प्रयोग न्याय संगत कार्य के पोषण के लिए किया जाता है तब उस बल का प्रयोग का नैतिक समर्थन किया जा सकता है।

तब बल प्रयोग को विलुप्त कर देना एक खामख्याली एक सतयुगी बात है। यह नई हलचल जो मुल्क में पैदा हो गई है और जिसकी हमने सूचना दी है उन आदर्शों द्वारा प्रेरित हुई है जिनके द्वारा गुरु गोविंद सिंह और शिवाजी, मस्तफा कमाल और रजाखां, वाशिंगटन और गैरी बाल्डी, लाफ़ायत और लेनिन प्रेरित और परिचालित हुए थे।

क्योंकि विदेशी सरकार और भारतीय जनता के नेताओं ने अपने आंख कान इस नए आंदोलन के अस्तित्व और उसकी ध्वनि की ओर से बंद कर लिए थे इसलिए हमने एक बार सबको सावधान कर देना चाहा और सो भी ऐसे समय और ऐसे स्थान पर जहां कि हमारी चेतावनी अश्रुत रही ना सके।

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हमारे इरादे का विस्तार

अभी तक हमने इस घटना के प्रेरक भाव का ही दिग्दर्शन कराया है। अब हम अपने इरादों के विस्तार का निदर्शन कर देना आवश्यक समझते हैं। इस बात का विरोध नहीं किया जा सकता कि हमारे अंदर उन आदमियों में से जिन्हें थोड़ी बहुत चोट आई किसी एक के प्रति भी या व्यवस्थापिका सभा के किसी अन्य व्यक्ति के प्रति भी हमारे अंदर कोई व्यक्तिगत विद्वेष भावना या नफरत थी।

इसके विपरीत हम फिर से यह बात दोहराते हैं कि हम मानव जीवन को और अन्य रूप में पुनीत समझते हैं और हम मनुष्यता की सेवा में अपने प्राण विसर्जन कर देना कहीं उत्तम समझेंगे किसी को हानि पहुंचाने की तो बात ही नहीं उठती हम किराए के सिपाही नहीं है भाड़े के सिपाहियों को यह सीख लाया जाता है कि वे बिना ममता के प्राण नाश कर देंगे।

हम मनुष्य जीवन के प्रति आदर भाव रखते हैं और जहां तक बन पड़ता है मनुष्य जीवन की रक्षा का प्रयत्न करते रहते हैं और फिर भी यह बात स्वीकार करते हैं कि हमने असेंबली भवन में जानबूझकर बम फेंके।

किंतु वास्तविक बातें स्वेम अपनी कथा आप कह रही हैं और बिना कल्पित या सांकेतिक परिस्थितियों एवं गृहहित मान्यताओं का सहारा लिए ही हमारे इरादे के संबंध में परिणाम केवल हमारे कार्य के नतीजे के ऊपर से ही निकलना चाहिए।

गवर्नमेंट विशेषज्ञ की गवाही के होते हुए भी जो बम असेंबली भवन में फेंके गए थे उनकी वजह से सिर्फ एक खाली मंच थोड़ी सी टूट फूट गई और आधे दर्जन से भी कम आदमियों को थोड़ी थोड़ी खराश सी आ गई।

गवर्नमेंट विशेषज्ञ ने इसे हलकी क्षति के परिणाम को जादू मंतर कहां है लेकिन हलकी क्षति में एक निश्चित वैज्ञानिक परिणाम सूचक ताप आते हैं पहली बात तो यह है कि दोनों बम खाली जगहों में डेस्कों और लकड़ी चोघरों तथा बेंचो के बीच फूटे थे दूसरी बात यह है कि वह आदमी भी जो बम फूटने के स्थान से केवल 2 फीट के अंतर पर थे या तो बिल्कुल बच गए और या बहुत हल्की तरफ से चोटिल हुए

2 फीट के भीतर रहने वालों में पीपीआर राव मी शंकरराव और सर जार्ज शुस्टर थे। सरकारी विशेषज्ञ ने इन बमों को जिस शक्ति का बतलाया है वह यदि ऐसे ही होते तो लकड़ी या चौखटा चकनाचूर हो गया होता और आसपास कुछ गजों के भीतर के आदमी ठंडे हो गए होते।

इसके अलावा हम बमों को सरकारी प्रतिनिधियों के बैठने के स्थान पर जहां बहुत से गणमान्य लोग बैठे हुए थे फेंक सकते थे और अंत में हम उन सर जॉन साइमन को भी घेर कर मार सकते थे जिनके अभागे कमीशन को सब लोग घृणा की दृष्टि से देखते हैं।

भगत सिंह सर जान उस समय प्रेसिडेंट महाशय के अतिथियों के स्थान पर बैठे थे लेकिन यह सब हमारे से बाहर की बात थी बम ने सिर्फ इतना काम किया जितने के लिए कि वे बनाए गए थे और जादू मंतर सिर्फ यही है कि हमने जानबूझकर बमों को निरापद स्थान में फेंका था।

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विचार अमर है

बाद में हमने जानबूझकर आत्मसमर्पण कर दिया हमने जो कुछ किया था उसका दंड भोगने के लिए हम तैयार थे साथ ही हम साम्राज्यवादी लूट खसोट करने वालों को यह बतला देना चाहते थे कि व्यक्तियों को कुचल डालने से वे दाहक विचारों को नहीं मार सकेंगे। दो नगण्य इकाइयों हम दोनों को कुचलने से राष्ट्र नहीं दबेगा।

हम यह ऐतिहासिक सबक फिर से तरोताजा करना चाहते थे की कैदखाने और अंधाधुंध वारंट फ्रांस की क्रांतिकाररिणी हलचल को दबाने में असमर्थ हुए।

फ्रांसीसीओ और साइबेरिया की खानों की दर्दनाक गुलामी रूसी विप्लव की चिंगारी नहीं बुझा सकी थी। खूनी तलवारों और खूंखार किराए के सिपाहियों की वजह से आयरिश स्वतंत्रता की हलचल नहीं मिटाई जा सकी। क्या काला कानून और सेफ्टी बिल भारत में स्वतंत्रता की लपट को बुझा सकता है? षड्यंत्र से गढ़े गए या ढूंढ कर निकाले गए मुकदमे और उन नौजवानों का कारावास जिन्होंने विशालतर आदर्श की झांकी देखली है।

भारत में क्रांति की प्रगति को नहीं रोक सकते लेकिन समय पर दी गई चेतावनी यदि उसकी ओर से कान ना मूंद लिए जाएं तो प्राणों के नाश और सामूहिक वेदना को रोकने में सहायक हो सकती हैं। हमने अपने ऊपर यह कार्यभार लिया था कि हम चेतावनी दे दें और हम समझते हैं कि हमारा कार्य संपूर्ण हो गया है।

विप्लव क्या है?

भगत सिंह से नीचे की अदालत में पूछा गया था कि तुम्हारा “क्रांति या विप्लव” शब्द से क्या मतलब है? इस प्रश्न के उत्तर में मैं कहूंगा की क्रांति का आवश्यक रूप में यह मतलब नहीं है कि उसमें खून खच्चर ही हो और ना क्रांति में व्यक्तिगत प्रतिशोध ही के लिए कोई स्थान है।

क्रांति बम और पिस्तौल का धर्म नहीं है। क्रांति से हमारा मतलब यह है कि वर्तमान वस्तुस्थिति और समाज व्यवस्था जो स्पष्ट अन्याय के ऊपर स्थित है, परिवर्तित हो।

पैदा करने वाले या श्रमजीवी समाज के अत्यंत आवश्यक अंश हैं परंतु वे दोहकों द्वारा नोचे खसोटे जाते हैं उनकी मेहनत का फल उन्हें नहीं मिलता दूसरे उसे हड़प जाते हैं और उनके प्रारंभिक अधिकार उनसे छीन लिए जाते हैं एक और वह किसान जो सबके लिए अनाज पैदा करता है अपने कुटुम के सहित भूखा मरता है। वह जुलाहा जो दुनिया की मंडी को बुने हुए कपड़ों से पूर्ण कर देता है अपना और अपने बच्चों का तन ढकने भर को भी नहीं पाता।

राज लोहार और बढ़ाई जो बड़े-बड़े विशाल भवन खड़े करते हैं गंदे घरों और अनाथालय में सड़ते खपते और मरते रहते हैं और दूसरी और नोचने और खसोटने वाले पूंजीपति जो समाज के रक्त शोषक हैं अपनी सनकों की संतुष्टि के लिए करोड़ों खर्च कर डालते हैं।

यह भयानक एसमानताएं और सुविधा प्राप्ति की यह बलात विषमताएं बड़ी भारी अस्त-व्यस्त दुरावस्था की ओर जा रही है।

इस प्रकार की अवस्था अब अधिक दिनों तक नहीं रह सकती यह प्रकट है कि समाज का वर्तमान रंग ढंग एक ज्वालामुखी के किनारे बैठा हुआ रंगरेलियां कर रहा है। लूट फसोट करने वालों के निष्पाप बच्चे और करोड़ों रोहित अतीत और प्रताड़ित लोग एक भयानक ढालू जमीन के किनारे पर चल रहे हैं। इस सभ्यता का संपूर्ण विशाल भवन यदि समय पर ना बचाया गया तो वह कर चूर चूर हो जाएगा।

पूर्ण परिवर्तन की आवश्यकता

इसलिए पूर्ण परिवर्तन की बहुत आवश्यकता है। उन आदमियों का जो इस बात का अनुभव करते हैं यह कर्तव्य है कि वह समाज को साम्यवादी सिद्धांत की भिती पर उन्हें संगठित करें। जब तक यह हो नहीं जाता और जब तक मनुष्य द्वारा मनुष्य का दोहन और राष्ट्र द्वारा राष्ट्र का दोहन जो साम्राज्य के नाम से मटर गस्ती करता संसार में डोल रहा है खत्म नहीं कर दिया जाता जब तक वह वेदना और संहार क्रीडा जिसकी आशंका से मानवता आज संत्रस्त है रोकी नहीं जा सकती तो युद्ध को खत्म कर देने की तमाम बातें और नवयुग आगमन का ख्याल एक नगन पाखंड मात्र है।

क्रांति से हमारा मतलब ऐसी समाज व्यवस्था के संस्थापन से है जिसे इस प्रकार के स्खलन का कभी भय ना रहे। और जिसमें सर्व साधारण की सत्ता का सर्व सव स्थापित हो इसका नतीजा यह होगा कि दुनिया में एक ऐसा संसार संघ स्थापित हो जाएगा जिसके कारण मनुष्यता का उद्धार होगा और संसार पूंजीवाद के बंधन और साम्राज्यवाद के दारुण दुख से मुक्त हो जाएगा।

यह हमारा आदर्श और अपने प्रेरक भाव की इस विचारधारा से प्रभावित होकर हमने बहुत न्यायपूर्ण और साथ ही बहुत उच्च स्वर से पूर्व चेतावनी दे दी है यदि हमारी चेतावनी पर ध्यान ना दिया गया और यदि वर्तमान शासन कर्म इसी प्रकार प्राकृतिक शक्तियों के उठते हुए तूफान के बीच बाधक सिद्ध होता रहा तो फिर एक घमासान एवं घोर युद्ध का होना अवश्यंभावी है।

उस युद्ध में तमाम बाधाएं उखाड़ उखाड़ कर फेंक दी जाएंगी और सवजनसत्ता की स्थापना होगी ओर तब क्रांति के आदर्श की पूर्ति का मार्ग प्रशस्त होगा।

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मानवता का अविच्छेद अधिकार

भगत सिंह विल्पव- क्रांति मनुष्यता का अविच्छेद अधिकार है स्वतंत्रता सबका अनिद्रिष्ट जन्मसिद्ध अधिकार है श्रमजीवी ही समाज का सच्चा धोरण है श्रमजीवीओं की अंतिम नियति है जनता की सत्ता इन आदर्शों और इन विश्वासों के लिए हम प्रत्येक वेदना को जो हमें दी जाएंगी आदर से स्वागत पूर्वक अंगीकार करेंगे इस विप्लव की बलि देवी में अर्पित करने के लिए हम अपनी नोजवानी की धूप यह सर्व रस लाए हैं क्योंकि इतने महान आदर्श के लिए किसी भी प्रकार का बलिदान अत्यधिक नहीं कहा जा सकता हम संतुष्ट हैं हम क्रांति के अवतार की प्रतीक्षा कर रहे हैं क्रांति जुग जुग जीवे।

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