वीर सावरकर के भाई गणेश सावरकर की गिरफ्तारी – भाग 3

वीर गणेश सावरकर की गिरफ्तारी

वीर सावरकर के भाई गणेश सावरकर की गिरफ्तारी

वीर सावरकर के बड़े भाई गणेश जी भारत के ही क्रांतिकारियों के दल का संगठन कराते थे 1960 में गणेश सावरकर ने “लघु अभिनव भारत मेला” नाम के कुछ देशभक्ति पूर्ण भड़काने वाली कविताएं प्रकाशित की थी इन कविताओं के कारण गणेश सावरकर को 121 धारा के अनुसार अर्थात सरकार के विरुद्ध युद्ध छेड़ने के अपराध में आजीवन काला पानी का दंड दिया गया कविताओं के लिए काला पानी यही ब्रिटिश सरकार का न्याय था

वीर सावरकर – मुंबई हाई कोर्ट के मराठा भाषी जज ने कहा

मुंबई हाई कोर्ट के मराठा भाषी जज ने कहा कि “लेखक का प्रधान उद्देश्य हिंदुओं के कुछ देवताओं तथा वीरों का जैसे शिवाजी आदि का नाम लेकर वर्तमान सरकार के विरुद्ध युद्ध घोषणा करना है। यह नाम तो सिर्फ बहाने हैं लेखक का कहना केवल इतना है कि शस्त्र उठा कर इस सरकार का विध्वंस करो, क्योंकि यह विदेशी तथा अत्याचारी है।

मदन लाल धींगरा ने कर्जन बायली को गोली से उड़ा दिया।

गणेश सावरकर को 9 जून 1909 के दिन आजीवन कारावास की सजा सुना दी गई और तार द्वारा इसकी सूचना लंदन भेज दी गई। कहां जाता है इसके पश्चात विनायक सावरकर ने लंदन में भारतीय भवन की बैठक में बहुत तेजी से बोलते हुए कहा कि इसका बदला लिया जाएगा इसके पश्चात सावरकर की प्रेरणा पर मदन लाल धींगरा ने कर्जन बायली को गोली से उड़ा दिया। 

रोल्ट साहब ने भी संदेह प्रकट किया है गणेश सावरकर पर मुकदमा करने वाले एक अंग्रेज मिस्टर जंक्शन थे जब गणेश सावरकर को सेशन सुपुर्द किया तो दल ने निश्चय किया कि मिस्टर जंक्शन की हत्या की जाए। तदनुसार औरंगाबाद के एक सदस्य ने 21 दिसंबर उन्नीस सौ नौ को मिस्टर जैकसन को गोली मार दी।

महाराष्ट्र में यह दूसरे अंग्रेज का वध

महाराष्ट्र में यह दूसरे अंग्रेज की हत्या थी यह हत्या उन्हें इस दोनों में से एक पिस्तौल से की गई थी जो लंदन से आई थी। 1909 फरवरी मास में विनायक सावरकर को 20 ब्राउनिंग पिस्तौले कारतूस मिली थी । यह पेरिस से आई थी।

चतुर्भुज अमीन नाम का भारतीय भवन में एक रसोईया था। वह जब भारत लौटकर आ रहा था तो इसके संदूक में एक झूठा फंदा लगाकर यह सब पिस्तौले भारत भेजी गई थी जब गणेश सावरकर गिरफ्तार हुए तो गिरफ्तार होने से पूर्व ही वे अपने एक मित्र को बता गए थे कि इस प्रकार जहाज में 20 पिस्तौल आ रही है। 

गणेश के पकड़े जाने के पश्चात उस मित्र ने यह सब सामान ले लिया था इस प्रकार गणेश सावरकर का बदला लिया गया उस समय आधा दर्जन भारतीयों को काला पानी के कारावास का दंड दिया गया उनमें से गणेश सावरकर एक था यह सख्त दंड सावरकर दल को भयभीत करके समाप्त करने के लिए दिया गया था किंतु यह लोग पहले की अपेक्षा और अधिक उत्साह से कार्य करने लगे।

सावरकर जी ने बैरिस्टरी पद को लात मरी देश के लिए

इन्हीं दिनों सावरकर ने बैरिस्टरी की अंतिम परीक्षा उत्तीर्ण कर जब प्रमाण पत्र देने का समय आया तो लॉर्ड मारले और कुछ इंडियंस ने सावरकर पर राजद्रोह का अभियोग चलाया। 

भारत सरकार ने भी सहायता की सावरकर ने इन सब अक्षेपो का उत्तर दिया। न्यायालय ने निर्णय दिया कि प्रमाण पत्र तो दे दिया जाए किंतु आगे को राजद्रोह ना करने की प्रतिज्ञा इनसे करा ली जाए। 

वीर सावरकर ने उत्तर दिया यह भी नहीं हो सकता क्योंकि यदि मैं कभी राजद्रोह करूं तो सरकार मुझ पर अभियोग चलाकर दंड दे सकती है, फिर आश्वासन देने की आवश्यकता ही क्या है इन्हें उस समय प्रमाण पत्र नहीं दिया गया इनका प्रमाणपत्र जप्त कर लिया गया बैरिस्टरी समान पद पर इस प्रकार लात मारने वाले पहले बैरिस्टर वीर सावरकर ही हैं।

मदनलाल धींगरा ने जब कर्जन वाइली को गोली से मार दिया तो उसकी सार्वजनिक रूप से निंदा करने के लिए लंदन में एक बड़ी सभा की गई जब निंदा का प्रस्ताव पास किया जाने लगा तो सम्मति लेने के समय साहस पूर्वक वीर सावरकर ने इसका विरोध किया। “इस पर एक यूरेशियन ने उनकी नाक पर घुसा मारा तब उसी समय एक भारतीय युवक ने उस रेशियन के सिर पर लाठी मारी, जिससे उसका सिर फट गया और वह गिर पड़ा।”

सभा में भगदड़ मच गई उस समय सावरकर जी पकड़ लिए गए किंतु उनको कुछ घंटे के पश्चात छोड़ दिया गया सावरकर ने उस यूरेशियन पर भी अभियोग चलाने से इंकार कर दिया दूसरे दिन इसका स्पष्टीकरण करते हुए लंदन टाइम्स में कहा अदालत के निर्णय से पूर्व किसी को हत्या कारी कहना अदालत का अपमान करना है अब लंदन में पुलिस भारतीय विद्यार्थियों के पीछे छाया के समान रहने लगी सावरकर की आज्ञा से लंदन के स्कॉटलैंड यार्ड की खुफिया पुलिस को भारतीय युवकों ने खूब तंग किया।

अंग्रेजो की ख़ुफ़िया पुलिस को चकमा

सावरकर की प्रेरणा से कुछ युवक लंदन की खुफिया पुलिस को उतना ही समाचार देते थे जितने सावरकर जी देने को कहते थे कभी-कभी तो पुलिस को धोखे में डालने योग्य समाचार भी दिए जाते थे वे युवक अपना मासिक वेतन अभिनव भारत संस्था में जमा करा देते थे ऐसे ही एक युवक मद्रासी सज्जन थे कुछ समय पश्चात उनके इस रहस्य का पता सरकार को चल गया वारंट निकले किंतु उन्हें पता चलते ही वे लंदन छोड़कर पेरिस चले गए।

इधर पुलिस की सरगर्मीयों के कारण इंग्लैंड के भारतीय विद्यार्थियों की दशा बहुत बुरी हो रही थी। उन्हें रहने के लिए कोई स्थान नहीं देता था होटल और रेस्टोरेंट में उन्हें घुसने नहीं दिया जाता था और बातचीत करते हुए भी लोग इनसे डरते थे खुफिया पुलिस का जाल इस प्रकार बिछा दिया गया कि अब भारतीय भवन में गुप्त सभाएं करना असंभव हो गया।

भारत स्वतंत्र होकर रहेगा

अंत: इंडिया हाउस बंद कर दिया प्रत्येक भारतीय युवक का घर ही इंडिया हाउस बन गया। सब लोग प्रतिदिन रात को एक स्थान पर इकट्ठे होते और अपनी राजनीतिक प्रतिज्ञा ओं को दोहराते थे वे जोर-जोर से कहते थे “भारत स्वतंत्र होकर रहेगा” भारत अवश्य एक स्वतंत्र राष्ट्र बनेगा भारत में एक भाषा और एक लिपि होगी लिपि देवनागरी और भाषा हिंदी होगी राजा व राष्ट्रपति जनता द्वारा निर्वाचित होगा इससे स्पष्ट है कि क्रांतिकारी केवल विध्वंसक कार्य ही नहीं करते थे किंतु वे भारत के भावी शासन विधान की रूपरेखा भी बना रहे थे।

जब लंदन में भारतीय विद्यार्थियों को कष्ट दिया जा रहा था उस समय भारत सरकार सावरकर के संबंधियों और मित्रों पर भयंकर अत्याचार कर रही थी। उनके श्वसुर जो चाहर राज्य के दीवान थे अपने पद से हटा दिए गए। उनके मित्रों की नौकरियां छीन ली गई संपत्ति जप्त कर ली गई कितनों के धंधे डूब गए सावरकर से बातचीत करते हुए भी लोग डरते थे इन्हें रहने को मकान नहीं मिलता था।

होटल वाले भी अपने यहां इन्हें नहीं ठहरने देते थे इन सब कष्टों के होते हुए भी सावरकर ने “तलवार” नामक एक पत्र निकाला। इस पत्र द्वारा सशस्त्र क्रांति का प्रचार करते थे फिर यह पत्र वीरेंद्र चट्टोपाध्याय को सौंप दिया। सावरकर जी रोग के कारण वेल्स के एक आरोग्य भवन में ठहरे हुए थे।

मित्रों ने खूब सेवा की एक संपादक ने उन्हें तार दिखलाया की गणेश सावरकर की सजा अपील में भी कायम रहे अनंत कान्हेरे नाम के एक युवक ने नासिक के कलेक्टर मिस्टर जैकसन को गोली से मार डाला। इसके दूसरे दिन ही इंग्लैंड के समाचार पत्रों ने प्रचार आरंभ कर दिया कि इन सब अत्याचारों में सावरकर का हाथ है अब सब मित्रों ने सावरकर से इंग्लैंड छोड़कर पैरिस चले जाने का आग्रह किया।

मैडम कामा देवी ने वीर सावरकर को रोगमुक्त किया

वीर सावरकर पैरिस पहुंचकर कामा देवी के पास रहने लगे। श्रीमती कामा ने इनकी सेवा बहुत की और इनको शीघ्र ही रोगमुक्त कर दिया। श्रीमती कामा देवी जी “वंदे मातरम” नाम का एक पत्र निकालती थी यहां सावरकर जी तथा लाला हरदयाल दोनों मिलकर ही योजना बनाया करते थे.

ब्रिटिश सरकार के गुप्तचर पेरिस में भी सावरकर पर कड़ी दृष्टि रखते थे। मिस्टर जैक्सन की हत्या का मुकदमा समाप्त हो गया पुलिस इस संबंध में सावरकर जी पर अभियोग चलाना चाहती थी किंतु इस बात को गुप्त रखे हुए थी भारतीय पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने के लिए चुपचाप लंदन पहुंच गई। इस बात का सावरकर को पता नहीं चला। 

इधर सावरकर अनन्त कान्हेरे के मुकदमे में इस बात को सतर्कता से देख रहे थे कि मुकदमे में कहीं उनका नाम आता है या नहीं। मुकदमे की समाप्ति पर जब इन्हें यह विश्वास हो गया कि मुकदमे में उनका नाम नहीं आया तो उन्होंने लंदन में जाकर अधिक कार्य करने का निश्चय किया। 

पंडित श्याम जी ने कहा की आप क्रांतिकारियों के सेनापति है

क्रांतिकारियों के भीष्म पितामह कहे जाने वाली पंडित श्याम जी कृष्ण वर्मा  ने इनको समझाया कि “आप इस समय क्रांतिकारियों के सेनापति हो बचकर कार्य संचालन करो। व्यर्थ जेल में पडकर सड़ने से सब कार्य समाप्त हो जाएगा।” 

किंतु वीर विनायक सोचते रहते थे क्या यह मनुष्यता है कि मेरे साथी जो मेरे ही कारण इस मार्ग में आए हैं उन्हें आज आग में धकेल कर स्वयं इस फ्रांस की सुंदर राजधानी में मौज करो। मैं कैसा सेनापति? जब सारे साथी कष्टों में पड़े हैं मेरी कराई प्रतिज्ञाओं के कारण बेड़ियां हथकड़ियां पहने भूखे प्यासे कारावास की अंधेरी कोठरी में पड़े सड़ रहे हैं और मैं नदी तट पर आनंद से घूम रहा हूं। यदि मैं भारत नहीं जा सकता तो इंग्लैंड अवश्य जाऊंगा मुझे वह सब कष्ट सहने होंगे जो मेरे साथी सह रहे हैं। 

मुझे संसार को बताना होगा कि मैं केवल त्याग ही नहीं कर सकता बल्कि विपत्तियां भी सहन कर सकता हूं। यदि मैं पकड़ा गया और मेरे प्राण भी चले गए तो मुझे अत्यंत प्रसन्नता होगी। इस पुण्य भूमि के लिए मृत्यु आने तक कार्य करते रहने की मेरी प्रतिज्ञा पूर्ण हो जाएगी। इन विचारों के वशीभूत हो वे पेरिस से साथियों के रोकने पर भी लंदन को चल दिए। 

पेरिस के सभी साथी इन्हें पहुंचाने आए विदा होते समय सावरकर जी बोले “अब तक मैंने शक्ति भर कार्य किया है। किंतु अब शक्ति भर कष्ट सहने जा रहा हूं। देश की वर्तमान परिस्थितियों में कष्ट सहना केवल कार्य करने से अधिक श्रेयस्कर है। पेरिस से इंग्लैंड जाने वाले जहाज पर सवार हो गए जहाज इंग्लैंड पहुंचा सावरकर लंदन जाने वाली रेलगाड़ी पर सवार हो गए।

दोस्तों इस लेख में इतना ही अगले भाग में हम पढेंगे वीर सावरकर जी की लन्दन में ग्रिफ्तरी और आगे क्या क्या कष्ट सहे .यदि आपने इसके पहले के 2 भाग नही पढ़े है तो वो भी पढ़ लीजिये निचे भाग 1 और भाग 2 का लिंक दिया है .

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Veer Savarkar In Hindi वीर सावरकर की जीवनी – भाग 2

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