Lala Lajpat Rai पंजाब केसरी लाला लॉजपतरांय जी के पिता का नाम राधाकृष्ण था। वे फिरोजपुर जिले के ढोडी ग्राम के निवासी थे। वहीं पर 28 जनवरी 1865 ई० को Lala Lajpat Rai का जन्म हुआ । इनके पिता जी भी पंजाब के एक छोटी सी तहसील के स्कूल में अ्रध्यापक थे। छ: वर्ष ग्राम के स्कूल में शिक्षा प्राप्त कर लाजपतराय जी ने लुधियाना के मिशन स्कुल में शिक्षा प्राप्त की। फिर अपने पिताजी के साथ अम्बाला पहुँच गए।
About Lala Lajpat Rai In Hindi
Lala Lajpat Rai | तिथी |
जनम | 28 जनवरी 1865 |
मौत death | 17 नवम्बर 1928 उम्र -63 वर्ष (स्वाभाविक मोत नहीं थी कुरुर अंग्रेजो ने हत्या की थी ) |
पिता का नाम | राधाकृष्ण जी |
माता का नाम | गुलाब देवी जी |
राजनितिक पार्टी | कांग्रेस (पर वो कांग्रेस आज जैसी कांग्रेस नहीं थी और उस समय भी कुछ कांग्रेसी नेता लालजी का विरोध किया करते थे ) |
कार्य | लेखक ,जनता के नेता , भारतवर्ष के महान क्रन्तिकारी |
अद्भुत रचना | योगी राज श्री कृष्ण |
यहां पर सं 1880 में पंजाब विश्वविद्यालय से मेट्रिक की परीक्षा अच्छे अंको से उत्तीर्ण की जिससे आपको छात्रवृत्ति मलने लगी। इससे श्रापके पिता जी को भी उत्साह मिला और उन्होंने आपको लाहौर गवर्नमेंट कालिज में पढ़ने के लिए भेज दिया ।
यहां से एफ०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण कर मुखत्यारी की परीक्षा भी आपने पास कर ली। उन दिनों महर्षि दयानन्द के पवित्र क्रांतिकारी सुधारक विचारों से सारा देश विशेषतया पंजाब प्रभावित हो रहा था। लाहौर में १८७७ में आर्यसमाज की स्थापना हो चुकी थी। लोकसेवा अथवा देशसेवा के पथिक के लिंए आर्यसमाज का क्षेत्र ही सबसे श्रेष्ठ था। अतः पंजाब के सब विचारक और होनहार युवक लेखराम, महात्मा मुन्शी राम, पं० गुरुदत्त, विद्यार्थी लाला लाजपतराय आदि आर्यसमाज के प्रमुख व्यक्ति माने जाते थे।
ये स्वामी दयानन्द के सन्देश को पंजाब के युवकों तक बड़ी उत्सुकता से पहुंचाने में संलग्न थे । आपने आयेसमाज के सार्वजनिक कार्यों में भाग लेते हुए वकालत भी पास कर ली ओर हिसार में आर्य समाज की स्थापना अपनी आय की सारी बचत १५००) दान में दे दी, उस समय तो यह बहुत बड़ा दान था। हिसार में आपने एक संस्कृत विद्यालय की स्थापना की।
आप हिसार के म्युनिर्सिपल बोर्ड के अवेतनिक मन्त्री रहकर तीन वर्ष तक सेवा करते रहे । आपने लाहौर के मित्रों के आग्रह के कारण: और पंजाब की सभी प्रगतियों का केन्द्र लाहौर समझकर हिसार को छोड़कर. वहीं पर डेरा. जमाया। पं० ग्रुरुक्त्त विद्यार्थी, लाला हंसराज को श्री दयानन्द एंग्लो वैदिक. कालिज की स्थापना में पूर्ण सहयोग दिया। उस समय यह स्वामी दयानन्द के आदर्शो को।
कार्यान्वित करने के उद्देश्य से स्वामी जी के स्मारक के रूप में बनाया गया था। किन्तु पीछे आकर यह केवल अंग्रेजी शिक्षा का केन्द्र ही रह गया, जिससे पं० गुरुदत्त विद्यार्थी तो निराश होकर इसे छोड़ गये । पं० गुरुदत्त जी, लाला हंसराज तथा लाजपतराय ने इसके लिए घोर परिश्रम किया और बिना किसी आर्थिक सहायता के इसे चलाया था।
Lala Lajpat Rai Information In Hindi
लाला जी इस कालिज की कमेटी के छः-वर्ष तक मंत्री रहे । श्राप कालिज की सेवा का कार्य अवेतनिक रूप से करते रहे ‘ पं० गुरुदत्त जी. ने २५ वर्ष की अल्पायु में ही संसार की यात्रा पूर्ण कर दी। तत्पशचात् लाला जी पर कार्यभार ओर बढ़ गया | श्राप आर्यसमाज की राष्ट्रीय शिक्षण संस्थाओं की स्थापना में तन, मन ओर घन से सह- योग देते थे । आप जालन्धर के एंग्लो संस्कृत कालिज के भी मंत्री रहे।
इन सेवाओं के कारण आपकी गणना भारत के शिक्षा विशेषज्ञों में होने लगी । इसी कारण जब लार्ड कर्जन ने
शिक्षा सम्बन्धी जांच कमेटी का निर्माण किया तो आपको भी कमेटी के समुख साक्षी सेना का सम्मानपूर्ण निमन्त्रण दिया गया। आपकी रुचि शिक्षा प्रचार में पराकाष्ठा को लांघ गई |
आप स्वेम सदा तपस्या का जीवन व्यतीत करते थे। ओर अपनी आय से संचित धन को दान में देते थे। यही
सदा तपस्या का जीवन व्यतीत करते थे ये ही आपका स्वभाव बन गया आप अपने लिए बचाकर रखना पाप समझते थे।
आपके त्यागमय जीवन से प्रभावित हो जनता आपकी आज्ञा पर सर्वेस्व न्योछावर करने को तैयार रहती थी। जनता आपके पीछे पागल थी। आपने अपनी खून-पसीने की कमाई में से ५० सहस्र रुपये शिक्षण संस्थाओं को अर्पण किये । उनकी बलिदान की भावना और सिहगर्जना के कारण पंजाब की जनता ने आपको | पंजाब केसरी के पद से सुशोभित किया | रोगी शरीर होते हुए तथा डाक्टरों के बार-बार विश्राम | करने का परामर्श देने पर भी आपने जीवन के अ्रन्तिम क्षण तक कभी विश्राम नहीं किया । रोंगशय्या पर भी कार्य करते रहते थे।
समाज सेवा Biography Of Lala Lajpat Rai In Hindi
शिक्षा-क्षेत्र के श्रतिरिक्त लाला जी ने समाज-सेवा देश-सेवा के कार्य में भी बढ़-चढ़कर भाग लिया । आपका हृदय तो जनता के प्रत्येक कष्ट से दुःखी होता ही था । देश की पराधीनता आपको कांटेके समान खटकती थी इसलिए-आप-ऐसी अ्रवस्था में विश्रामपूर्ण जीवन कैसे व्यतीत कर सकते थे।
देश का दुःख इनके लिए अपना निज का दुःखः था | सनु १८६६ में उत्तर भारत में भयंकर अकाल पड़ा और वह दुष्काल कुछ समय के लिए* बढ़ता ही चला गया। १८६७ में यह बंगाल मध्यभारत,और. राजपूताना में भी: फेल गया, खेतियां सूख गईं, तालाबों: में भी पीने को पानी न रहा ।
हजारों नर नारी भूख के मारे तडप तडप कर प्राणदेने लगे, ग्राम के ग्राम खाली हो गए। हजारों अनाथ बालक गलियों में भटकने लगे। अंग्रेजी सरकार ने आसूं पोंछने के लिए नाम मात्र की सहायता की।
इन विदेशी शासकों के मन में दया के स्थान पर निष्ठुरता कुट-कुठ कर भरी- हुई थी । इन्होंने एक धूर्तता और की जो- ईसाई पादरी अ्रकालग्रस्त माता पिंताओं के अनाथ बच्चों को अपनी शरण में लें रहें थे।
उन पादरियों को इस कार्य में अंग्रेज. सरकार ने सहायता की, इस प्रकार सहस्रों हिन्दू निसहाय अनाथ बालक ईसाई पादरियों के हाथ में आगए। अकेलें राजपृतानें’ में ही इसी प्रकार ७० हजार हिन्दू प्रनाथ वालक ईसाई पादरियों के’ चंगुल में जा चुके थे! लाला लाजपनराय ने इस दुःख से दुःखी होकर झोली बाँधी श्रीमानों कें द्वार-द्वार पर घूम*घुमकर अन्न-धन्नं’ इकट्ठा करने लगे और दुभिक्षे पीड़ितों को अन्न और वस्त्र से सहायता देनी प्रारम्भ कीं।
अनाथ हिन्दू बालकों कीं रक्षार्थ आर्य समाज’ की सहायता से कई नगरों में अ्रनाथालय खोले । इन’ अनाथालयों में सहस्नों बालकों की रक्षा का स्थायी आ्राश्रय मिल गया। फिरोजपुर में सबसे बड़ा अनांधालय’ खोला गया । लाला जी ने इसके सच्चालन का भार अपने ऊपर लिया। लाला जी का यह उंपकार कार्य हिन्दू जाति के इतिहास में चिरस्मरणीय रहेगा। लाला जी ने १६०१ में सरकार द्वारा नियुक्त दुर्भिक्ष कमीशन के सामने साक्षी देते हुए आग्रह किया की हिन्दू अनाथ बालकों को ईसाई पादरियों को’ न’ दिया जायें किन्तु उसके! सहधर्मियों को वा हिन्दू संस्थाओं को सौंपा जाये |
इस’ प्रकार हिन्दू’ जाति की रक्षार्थ वें सदेव तंत्पर ‘ रहते थे। दुष्काल के पश्चात पंजाब (काज़ड़ा) में भूकम्प से जन धन कीं बहुत बड़ो हानि हुई । वहाँ भी आपने घटना स्थल पर पहुंचकर खूब सेवा की। इसी प्रकार उड़ीसा और मध्यभारत में १६०८ में दुष्काल के समय श्रापने खुब सेवा की .
सन 1912 में एक कछु तो अछूत उद्धार सम्मेलन गुरुकुल कांगड़ी के वार्षिकोत्सव पर आपके सभापतित्व में हुआ। उस समय तक महात्मा गांधी को हरी जनों के उद्धार का विचार भी नहीं आया था उन दिनों आर्य समाज हिंदू समाज के उपेक्षित वर्ग दलित भाइयों के उद्धार ठोस क्रियात्मक सेवा कार्य कर रहा था। आप आर्य समाज के सेवक थे ही अत: आपने अछूत समझे जाने वाले भाइयों की सेवा का कार्य आपने खूब बढ़-चढ़कर किया।
दलित वर्ग की शिक्षा के लिए लालाजी ने विशेष मेहनत की। इस कार्य के लिए आपने 40,000 रुपए अपने पास से दान किए। इस रुपए से अछूत समझे जाने वाले भाईयो के लिए अनेक शिक्षण संस्थाएं खोली। आप अछूत ओके घरों में जाकर उनके हाथ से भोजन करते थे और आपने सैकड़ों वर्ष की इस प्राणी रीति को इस प्रकार साहस से भंग किया। लाला lala lajpat rai अथवा आदेश समाज द्वारा जूतों का उद्धार का कार्य महात्मा गांधी के कार्यक्षेत्र में उतरने से पूर्व ही प्रारंभ हो चुका था।
यह सब सेवा कार्य अपने पूज्य गुरु महर्षि दयानंद कृपा से ही लाला lala lajpat rai ने सिखा था।
कांग्रेस में प्रवेश Lala Lajpat Rai Quotes In Hindi
सन 18 सो 85 ईस्वी में लॉर्ड डफरिन की सहमति से जो उस समय वायसराय थे मिस्टर ह्यूमने इंडियन नेशनल कांग्रेस की स्थापना की थी। इसका पहला अधिवेशन मुंबई में दूसरा अधिवेशन 18 सो 86 में कोलकाता में दादा भाई नौरोजी की अध्यक्षता में हुआ। इनमें लाला लाजपत राय सम्मलित नहीं हुए। चौथा अधिवेशन 1888 में प्रयाग में हुआ। इसमें में सर्वप्रथम लालाजी कांग्रेसमें सम्मिलित हुए थे।
उस समय आप की 23 वर्ष की आयु थी आपने इस अल्पायु में कौंसिल सुधार का बिल उपस्थित किया और आप बोले भी। 18 सो 92 में फिर प्रयाग में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ इन दिनों सर सैयद अहमद सरकार से मिलकर कांग्रेसका विरोध कर रहे थे। लालाजी ने इस अधिवेशन में एक पत्रिका प्रकाशित करके बट व्हाय जिसमें सर सैयद अहमद के कांग्रेस विरोधी विचारों का मुंह तोड़ उत्तर दिया था।
कांग्रेस का अगला अधिवेशन लाहौर में हुआ पंजाब के मुस्लिम वर्ग ने सहयोग देना तो दूर रहा डटकर विरोध किया। कांग्रेस के नेता घबराए हुए थे क्योंकि कांग्रेस का प्रचार पंजाब में सर्वथा नहीं हुआ था पंजाब में आर्य समाज एक शक्तिशाली देश भक्त संस्था थी यदि उस समय आर्य समाज के नेता सहयोग ना देते तो कांग्रेस का अधिवेशन लाहौर में नहीं हो सकता था। किंतु आर्य समाज यू ने कांग्रेस अधिवेशन का सब कार्य भार अपने ऊपर लिया।
लालाजी ने रात दिन एक कर दिया सभी आर्य समाजी तन मन और धन से जुट गए लालाजी ने पंजाब के सभी नगरों से धन इकट्ठा किया और लाहौर के अधिवेशन को पूर्णतया सफल बनाया। आज के कांग्रेसी उस पुराने इतिहास को भूल गए कि आर्य समाज ने उस समय कांग्रेसका सहयोग दिया था जब कांग्रेसका नाम लेवा और पानी देवा कोई भी नहीं था।
इस कांग्रेस अधिवेशन के पश्चात पंजाब सरकार की दृष्टि लाला lala lajpat rai के प्रति क्रूर हो गई और लाला जी सरकार विरोधी पक्ष के नेता बन गए लाला लाजपत राय ने 18 सो 96 में विक्टोरिया महारानी के राज्य की हीरक जयंती मनाने तथा रानी की मूर्ति स्थापित करने का डटकर विरोध किया इस समय महाराष्ट्र में महात्मा तिलक को रानी विक्टोरिया के हीरक जयंती का विरोध करने के कारण सरकार ने डेढ़ वर्ष कड़ी कैद का दंड दिया।
खेत से छूटने के पश्चात महात्मा तिलक की विचारधारा और भी उग्र हो गई lala lajpat rai भी उग्र विचारों के समर्थक थे समान स्वभाव होने से दोनों ने मिलकर कांग्रेस की नीति को उग्र बनाने का निश्चय कर लिया। उन दिनों कांग्रेश नरम दल के नेता गोखले वादादा भाई थे। कहीं वर्ष दोनों दलों में खूब संघर्ष चला।लालाजी स्वभाव से गर्म दलित है वे विदेशी सरकार से लड़ कर अपना अधिकार प्राप्त करने की नीति के पक्ष में थे सब राज्य की भिक्षा मांगने के सर्वथा विरोधी थे लालाजी सरकार की नीति का विरोध करते रहते थे।
गिरफ्तारी history in hindi
सरकार लालाजी को गिरफ्तार करने का बहाना ढूंढ रही थी 1905 में भंग भंग से सारे भारतवर्ष में अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध प्रबल आंदोलन हो रहा था सरकार की दमन की चक्की भी चल रही थी हजारों देशवासी जेल में बंद कर दिए गए पंजाब की सरकार भी कब पीछे रहने वाली थी 1907 के बंगाल रेगुलेशन का सहारा लेकर lala lajpat rai को पकड़कर देश निर्वासन का दंड दे मांडले की जेल में बंद कर दिया।
आपको जेल में भी अनेक कष्ट दिए गए यहां तक कि आपके छोटे भाई लाला धनपत राय को जो आपसे मिलने मांडले पहुंचे थे मिलने नहीं दिया । 16 मई 1907 को आपको मांडले में बंदी किया था। उन दिनों अंग्रेजी सरकार के गुप्त चोरों ने इस प्रकार की रिपोर्ट दी थी कि
” पंजाब में आर्य समाज क्योंकि एक लाख से ना lala lajpat rai की सहायता से विद्रोह करने के लिए तैयार है और आर्य समाज विद्रोह का केंद्र है।”
इन सब के परिणाम स्वरुप ही लाला जी और श्री अजीत सिंह को गिरफ्तार करके देश निर्वासन का दंड मिला था लाला जी के निर्वासन से देश में असंतोष की आंधी चल पड़ी वायसराय की कमेटी में गोखले ने भी इस पर दुख प्रकट किया इसका प्रभाव लंदन में भी बहुत अधिक पड़ा वहां एक बड़ी सार्वजनिक सभा की गई जिसमें श्री हाइंड ने तो एक लंबी चौड़ी वक्ता दी। इस सभा में उपस्थिति इतनी अधिक हुई कि सभा भवन में स्थान ना मिलने के कारण एक मंडप में सभा की गई जिसमें लाला जी का जीवन चरित्र सुनाया गया।
ब्रिटिश पार्लियामेंट में भी प्रसन्न हुए स्वयं लालाजी ने भारत मंत्री को निर्वासन आजा के विरुद्ध पत्र लिखा संसार के सामने कली खुल गई कि लाला जी का देश निर्वासन का दंड देना भारत सरकार की धींगा मस्ती थी। ब्रिटिश सरकार के मंत्री ने भारत सरकार से इस निर्वासन का कारण पूछा भारत सरकार कोई संतोषजनक उत्तर न दे सकी तब प्रधानमंत्री ने लालाजी की मुक्ति का आज्ञा पत्र निकाल दिया लाला जी और श्री अजीत सिंह को मांडले की जेल में ही रखा गया था।
किंतु आपस में मिलने की आज्ञा नहीं थी अंत में 11 नवंबर 1907 के दिन दोनों को छोड़ देने की आज्ञा हुई। किंतु इनके छोड़ने की सूचना किसी को नहीं दी गई अकस्मात लाहौर में आपको अपने बीच पाकर जनता के हर्ष का ठिकाना ना रहा इस छह मास के निर्वासन से लालाजी सारे भारतवर्ष के नेता बन गए यह कार्य अंग्रेजी सरकार ने कर दिया कि लालाजी पंजाब के ही नहीं सारे भारतवर्ष के नेता बन गए और पंजाब के शिरोमणि नेता हो गए।
लालाजी ने मांडले से लौटकर सारे उत्तर भारत के नगरों का दौरा किया वकालत के पेशे को लात मारकर अपना सारा शेष जीवन देश सेवा में समर्पित कर दिया वकालत का व्यवसाय छोड़कर देश सेवा को ही जीवन का व्यवसाय बना लिया साथ-साथ आप आर्य समाज का भी कार्य करते रहे लाहौर के अनारकली बाजार से वेश्याओं को निकालने के आंदोलन में आपने पूर्ण शक्ति लगाई।
विदेश यात्रा Lala Lajpat Rai In Hindi Essay
श्री गोखले महात्मा तिलक तथा ब्रिटेन मजदूर नेता रैमजे मैकडॉनल्ड आदि का यह विचार था कि यदि भारत के कुछ उत्तरदाई नेता ब्रिटेन में आकर पार्लियामेंट के सदस्यों को अपने अनुकूल बना सके तो भारत को ओपनिवेशिक स्वराज्य मिल सकता है।
इन सबकी सहमति से लाला लाजपत राय जी इंग्लैंड गए थे वहां पहुंचकर लालाजी ने वहां के प्रमुख राजनीतिज्ञों से भेंट की तथा वहां पर भारतीय भावनाओं को स्पष्ट करने के लिए वहां की जनता के सम्मुख अनेक भाषण दिए तथा इसी विषय का साहित्य तैयार किया इन दोनों का बड़ा अच्छा प्रभाव पड़ा।
परिणाम स्वरूप ब्रिटिश जनता का बहुत बड़ा भाग भारत को सब निर्णय का अधिकार देने को तैयार हो गया था इसी कार्य के लिए लाला जी को कई बार इंग्लैंड जाना पड़ा इंग्लैंड में आपका संबंध श्याम जी कृष्ण वर्मा के साथ हो गया था। सन 1914 ईस्वी में प्रवासी भारतीयों के प्रति विदेशों में जो दुर्वे व्यवहार हो रहा था उसके निराकरण आर्थ आप कांग्रेस की ओर से शिष्टमंडल लेकर इंग्लैंड पहुंचे शिष्टमंडल का कार्य पूर्ण होने पर अन्य सदस्य तो भारत लौट आए किंतु लालाजी वहीं रह गए आपकी इच्छा जापान होकर लौटने की थी जापान की यात्रा पूर्ण करके जवाब भारत लौटने लगे तभी भारत का महायुद्ध छिड़ गया।
पुनः देश निर्वासन History
भारत सरकार ने ब्रिटेन स्थित भारत मंत्री को दिखा की युद्ध काल में लाला लाजपत राय को भारत जाने की आज्ञा ना दिख जाए भारत सरकार को भय था कि lala lajpat rai की उपस्थिति से भारत में अंग्रेजों के विरुद्ध जो भावना भड़क रही थी वह प्रबल हो जाएगी लालाजी युद्ध की समाप्ति तक भारत से निर्वाचित कर दिए गए।
जापान से इंग्लैंड और फिर वहां से नवंबर सन 1914 को अमेरिका चले गए वहां रहकर आप ने अमेरिका के जनमत को भारत के अनुकूल बनाने का अथक परिश्रम किया। ब्रिटिश पत्र अमेरिका में भारत के विषय में जो भ्रम फैलाते थे उन सब का निराकरण लालाजी ने अपने भाषणों तथा लेखकों द्वारा कर दिया। ” तरुण भारत” नाम की एक पुस्तक लिखकर भारतीयों की राष्ट्रीय भावनाओं का सुंदर चित्र खींच कर यह प्रचार किया कि भारतीय नवयुवक ब्रिटिश शासन को नहीं चाहते और भारत को स्वतंत्र राष्ट्र बनाने के लिए बड़े से बड़ा बलिदान करने को तैयार हैं।
अमेरिका में इस पुस्तक की सहस्त्र ओं प्रतियां हाथों-हाथ बिक गई इस पुस्तक की एक-एक प्रति ब्रिटिश पार्लियामेंट के सदस्यों को भेंट की थी उसी समय भारत सरकार ने इस पुस्तक की सब प्रतियां जब्त कर ली इस पुस्तक के प्रकाशन से lala lajpat rai का सम्मान अमेरिकन की दृष्टि में बहुत बढ़ गया।
फिर क्या था चारों ओर से भाषण और लेख लिखने के निमंत्रण मिलने लगे लालाजी ने भी अनेक संस्थाओं और विश्वविद्यालयों में खूब दिल खोलकर अपने देश की कथा सुनाई भारत के विषय में अमेरिकन लोकमत को लेखों और भाषणों से बदल डाला इन से पूर्व अमेरिकन भारतीयों को असभ्य एवं जंगली मानते थे उनका विश्वास था कि अंग्रेजों ने भारत को अपने शासन में लेकर भारत पर महान उपकार किया हुआ है। लालाजी ने भाषाओं तथा लो लेखनी से इस मिथ्या विश्वास को जड़ से हिला दिया आपने वहां पर पुरुषार्थ के बल पर क्रियात्मक कार्य भी किया अमेरिकन लोग लाला जी को बड़ी श्रद्धा की दृष्टि से देखने लगे।
Indian Home rule of लीग की स्थापना
अमेरिका में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए आपने इंडियन होम रूल लीग की स्थापना की थी इस कार्य में आर्य समाज के प्रसिद्ध उपदेशक डॉक्टर केशव देव शास्त्री और डॉक्टर आरडी करने भी सहायता की।
डॉक्टर हार्ड इकोरली के मंत्री और लालाजी सभापति बने।यह प्रचार का कार्य पहले तो स्वयं ही कर रहे थे फिर महात्मा तिलक ने आपकी सहायता की महात्मा तिलक ने ₹17000 लाला लाजपत राय को भेजे थे यह सहायता पाकर लाला जी ने अपना कार्य दुगुने उत्साह से प्रारंभ कर दिया आपने यंग इंडिया नामक एक मासिक पत्र प्रकाशित किया और तरुण भारत भारत का इंग्लैंड पर ऋण भारत के लिए आतम निर्णय आदि अनेक पुस्तकों का फ्रांस इटली स्पेन जर्मनी रूस आदि में भी प्रचार किया।
यूरोप की सभी भाषाओं में इसका अनुवाद हो चुका है यह सब प्रकार का कार्य लालाजी ने अपने निर्वासन काल में किया सरकार उनके दोनों निर्वासन ओं का कारण नहीं बता सकी भारत की धारा सभा में जब यह प्रश्न पूछा गया लाला लाजपत राय को भारत आने की आज्ञा क्यों नहीं दी जाती तो इस प्रश्न का उत्तर देना सार्वजनिक हित के अनुकूल नहीं है यह कहकर टाल दिया गया।
नेताओं ने ब्रिटिश सेना की सहायतार्थ भारतीयों की भर्ती को प्रोत्साहित किया था यह सब इन्हीं आशाओं के आधार पर किया गया था किंतु भारतीयों को नाम पत्र के अधिकार दिए गए महात्मा गांधी ने इन सुधारों को स्वीकार करने से निषेध कर दिया सरकार ने रौलट एक्ट कौंसिल के पास करने का निश्चय किया। किंतु सारे भारतवर्ष में इसके विरोध में सभाएं हुई अमृतसर के जलियांवाला बाग में इसका विरोध करने के लिए सभा हुई वहां अंग्रेज सरकार के अत्याचारी गोरे सिपाहियों ने निहत्थे भारतीयों पर जिस निर्दयता से गोलियों की वर्ष की थी वह अंग्रेजी शासन के इतिहास का सबसे अधिक काला पृष्ठ है।
इस अत्याचार से भारतीय जनता भड़क उठी किंतु सरकार ने अपने अत्याचारी अधिकारियों को दंड देने के स्थान पर उनका पक्ष लिया लाला लाजपत राय इन दिनों अमेरिका में ही थे पंजाब में हुए इस भीषण अत्याचार के समाचार से व्याकुल हो थे अब भी भारत में आने की आपको आज्ञा नहीं थी आपने फिर ब्रिटिश के राजनीतिज्ञों को बहुत कुछ लिखा पढ़ा तब कहीं आपको अपने देश में आने की आज्ञा मिली।
जिस समय आप भारत आए तो ब्रिटिश सरकार की क्रूरता को देखकर उनका विश्वास इन शासन सुधारकों से हट गया और यही निश्चय हो गया कि प्रस्तावित शासन सुधारों को का बहिष्कार करना ही उचित है देश ने आपके लौटने पर आपको राष्ट्र के सबसे ऊंचे आसन पर बिठाया। सन 1920 में कांग्रेस का विशेष अधिवेशन कोलकाता में बुलाया गया वहां महात्मा गांधी के प्रभाव से सहयोग का कार्यक्रम पास हो गया लालाजी असहयोग के युद्ध में उतर आए लालाजी ने पंजाब के नगरों में घूम घूम कर आ सहयोग का संदेश जनता के कानों तक पहुंचाया।
गिरफ्तारी लाला जी wikipedia in hindi
3 सितंबर सन 1921 के दिन राजद्रोही भाषण देने का अभियोग लगाकर सरकार ने डेढ़ वर्ष का दंड देकर जेल में डाल दिया। जेल की रूखी सूखी रोटी और जनों के कारण लाला जी का दुर्बल शरीर रोगा ग्रस्त हो गया क्षय रोग ने आपको घेर दिया। अधिकारियों को बड़ी चिंता हुई कभी लाला जी की मृत्यु जेल में ना हो जाए अतः आपको 16 अगस्त को बिना किसी शर्त के छोड़ दिया आप सोलन पहाड़ पर गए वहां के अच्छे जलवायु के कारण आप स्वस्थ हो फिर कार्यक्षेत्र में आ गए।
तिलक राजनीति विद्यालय information in hindi
सभी प्रांतों में राष्ट्रीय शिक्षा के लिए राष्ट्रीय नेताओं ने राष्ट्रीय विद्यालय खोल दिए थे पंजाब में इसका अभाव था इस विद्यालय के लिए आपने स्वयं ₹40000 देकर और अपने रहने का मकान भी जिसका नाम लाजपत राय भवन था दान देकर तिलक राजनीति विद्यालय की स्थापना की अपना सुंदर भवन देकर आप स्वयं पुराने मकान में रहने लगे।
विद्यालय का संचालन आपकी देखरेख में ही होता था महात्मा तिलक से आपका बड़ा प्रेम था तथा आपके मन में उनके प्रति बड़ा आदर था अतः उन्हीं के नाम पर यह विद्यालय खोला गया इस विद्यालय में देवता स्वरूप भाई परमानंद तथा जयचंद्र विद्यालंकार जैसे योग्य प्रोफेसर पढ़ाते थे।
इसी में भगत सिंह, यशपाल, सुखदेव तथा भगवतीचरण आदि पढ़ते थे। इसी विद्यालय में देशभक्ति का पक्का रंग इन युवकों पर चढ़ा इस विद्यालय में हरियाणा के भी बहुत छात्र पढ़ते थे भाई जी उनसे बहुत प्रेम करते थे।
लोक सेवा संघ की स्थापना essay
लालाजी ने निर्वाह मात्र के लिए धन लेकर राष्ट्रीय सेवा में जीवन देने वाले राष्ट्रीय कार्यकर्ता तैयार करने के लिए “लोक सेवा संघ” “people’s society” की स्थापना की लोक सेवा संघ आज भी कार्य कर रहा है पुरुषोत्तम दास टंडन अल घूरायर शास्त्री आदि उसी के सदस्य हैं इसी संस्था ने पंजाब में राष्ट्रीय भावनाओं का प्रचार किया सत्याग्रह का युद्ध प्रारंभ होते ही लोक सेवा संघ के सब कार्यकर्ता जेल में चले गए।
हिंदू संगठन का कार्य slogan of lala lajpat rai in hindi
गांधी जी के सत्याग्रह आंदोलन में बलिदान करने वाले आर्य समाजी विशेषता सामान्य रूप से हिंदू ही थे मुसलमान नेताओं में से एक दो को छोड़कर सभी ने सत्याग्रह में भाग लेने से इंकार कर दिया अतः अंग्रेज सरकार ने मुसलमानों को सब प्रकार से बढ़ावा दिया। परिणाम यह हुआ कि हिंदुओं पर संकट के बादल छा गए अंग्रेज सरकार ने मुसलमानों से मिलकर हिंदुओं को कुचलना प्रारंभ किया चोरा चोरी के हत्याकांड के पश्चात महात्मा गांधी जी ने नेताओं से बिना ही विचार किए सत्याग्रह युद्ध बंद कर दिया महात्मा गांधी को 6 महीने के लिए सरकार ने जेल में बंद कर दिया।
कुछ महत्व पूर्ण लेख | लेखो के लिंक |
Ram Prasad Bismil Ki Shayari In Hindi – {Man Ki Lehar Book} | लेख पढ़ें |
योग क्या है । {योग} की परिभाषा क्या है? योग की विशेषताएं | लेख पढ़ें |
ध्यान क्या है ? Dhyan kya hai | लेख पढ़ें |
सर्वत्र निराशा छा गई सरकार के संकेत पर मुसलमान हिंदू अधिकारों को पद दलित करने लगे हिंदुओं को हजारों की संख्या में मुसलमान बनाया जाने लगा गांव के गांव मुसलमान होते देख लाला लाजपत राय स्वामी श्रद्धानंद तथा पंडित मदन मोहन मालवीय ने कंधे से कंधा मिलाकर हिंदू संगठन शुद्धि और अछूत समझे जाने वाले भाइयों का उद्धार करने में पूर्ण शक्ति लगा दी।
हिंदू समाज को बलशाली बनाना भी राष्ट्रीय कार्य था समाज सुधार ही राष्ट्रीय सेवा है इस महत्वपूर्ण बात को यह नेता भली-भांति समझते थे अतः शुद्धि और संगठन के कार्य में जुट गए और अंग्रेज सरकार एवं मुस्लिम नेताओं की धूर्तता को नहीं चलने दिया लालाजी पहले से ही आर्य समाजी होने से झूठी आलोचनाओं की परवाह करने वाले थे। आता है वह अंत तक हिंदू संगठन और शुद्धि के कार्य में लगे रहे इससे हिंदू समाज में जागृति और जीवन आ गया इसके लिए हिंदू जाति लाला लाजपत राय जी आदि नेताओं की सदैव ऋणी रहेगी।
स्वराज्य दल essay in hindi
महात्मा गांधी की सत्याग्रह को स्थगित करने की भूल के कारण चारों और अकर्मण्यता और निराशा छा गई सारा भारत मृत प्राय दिखाई देने लगा ऐसे समय पर पंडित मोतीलाल नेहरु देशबंधु चितरंजन दास तथा लाला लाजपत राय ने स्वराज्य दल का आयोजन किया। वे सब असेंबली में जनता के प्रतिनिधि बनकर गए और सरकार से लड़ाई लड़ते रहे पंडित मोतीलाल जी के साथ मतभेद रहने के कारण स्वराज्य दल को कुछ समय के पश्चात छोड़ पंडित मदन मोहन मालवीय जी के साथ मिलकर स्वतंत्र राज्य दल की स्थापना की।
और इसकी ओर से चुनाव लड़ा पंडित मोतीलाल नेहरू ने आप के विरोध में कई उम्मीदवार खड़े किए थे किंतु लालाजी दो स्थानों से खड़े होकर दोनों स्थानों से जीतकर चुने गए पंडित मोतीलाल जी को नीचा देखना पड़ा वैसे आप कांग्रेस के साथ मिलकर ही कार्य करते रहे।
साइमन कमीशन lala lajpat rai biography in hindi
भारत को अधिकार देने चाहिए या नहीं यह परीक्षा करने के लिए साइमन कमीशन भारत भेजा गया। भारत के नेताओं ने यह मांग की थी कि इस कमीशन में भारत की जनता के कुछ प्रतिनिधि सम्मिलित करने चाहिए किंतु ब्रिटिश सरकार ने उस उचित बात को नहीं माना अतः देश के नेताओं ने कमीशन के बहिष्कार का निश्चय किया कमीशन जहां भी जाता था उसका काले झंडों से स्वागत किया जाता था साइमन कमीशन गो बैक साइमन कमीशन वापस जाओ का नारा जनता लगाती थी
लाहौर में है कमिशन 30 अक्टूबर 1927 को आ रहा था लाहौर में भी जनता हजारों की संख्या में काले झंडे लेकर स्टेशन पर पहुंच गई जुलूस का नेतृत्व पंजाब केसरी लाला लाजपत राय जी कर रहे थे। पुलिस के अधिकारी सुपरिटेंडेंट मिनिस्टर स्कॉट साहब ने जुलूस को तितर-बितर करने के लिए जत्थे के लोगों पर लाठी चलाने की आज्ञा दी।
फिर क्या था लाठियां बरसने लगी लोगों के सिर फट गए सब लहूलुहान हो गई शायद ही कोई पुलिस की लाठी की मार से बचा होगा फिर लाला जी कैसे बच सकते थे वे तो जुलूस के आगे आगे थे उन पर भी अनेक लाठियां पड़ी उनकी छाती पर घाव बाय छाती पर सूजन आ गई ऊपर से चोट साधारण दिखाई देती थी किंतु लाठी की चोटें शरीर में बहुत गहरी गई थी लाला जी का वृद्ध और निर्बल शरीर इन चोटों को कैसे सहन कर सकता था।
छाती की पीड़ा बढ़ती ही गई 16 नवंबर 1928 के दिन उनके सारे शरीर में पीड़ा होने लगी बुखार भी बढ़ गया। रात बड़े कष्ट से कटी 17 नवंबर को प्रातः 6:00 और 7:00 के मध्य में अपने प्राण त्याग दिए चिकित्सकों का यह मत है कि शारीरिक घाव ही उनकी मृत्यु का कारण नहीं किंतु सरकार की क्रूर नीति का भी आपके हृदय पर भारी प्रभाव पड़ा था।
उनका मानसिक कष्ट शारीरिक कष्ट से अधिक दुखदाई था लालाजी जो अत्यंत आतम सम्मान प्रिय व्यक्ति थे इस तिरस्कार पूर्ण व्यवहार को चुपचाप कैसे सहन कर सकते थे इस मानसिंह कष्ट ने ही उनके प्राण ले लिए। लाला जी की मृत्यु के समाचार से सारे भारतवर्ष में शोक की घटाएं छा गई शव यात्रा के साथ लाखों व्यक्ति थे रावी नदी के तट पर अंत्येष्टि संस्कार किया गया पंजाब का सूर्य अस्त हो गया आज भी लालाजी की याद देशवासियों के लिए दुखप्रद है।
लाला लाजपत राय पर लाठीचार्ज तथा उनकी मृत्यु
उनकी मृत्यु के विषय में पंडित जवाहरलाल नेहरु ने अपनी आत्मकथा में लिखते हैं साइमन कमीशन भ्रमण कर रहा था और जहां जाता था उसका विरोध करने के लिए जनता काले झंडे गो बैक उल्टे जाओ के नारे लगाती हुई उनका पीछा करती थी लाहौर में बात बढ़ गई सारा देश क्रोध से कांप उठा वह जो साइमन कमीशन के विरोधी थे उनका नेतृत्व जुलूस के रूप में लाला लाजपत राय जी कर रहे थे।
वह सड़क के किनारे हजारों प्रदर्शन करने वालों के आगे खड़े थे पुलिस के नवयुवक एक अंग्रेज़ अफ़सर ने झपट कर इनकी छाती पर लाठी मारनी आरंभ कर दी लाला जी की तो बात ही क्या है सारी भीड़ में किसी व्यक्ति ने भी किंचित मात्र अहिंसा का कार्य नहीं किया किंतु सब सर्वथा शांत खड़े थे इस पर भी पुलिस ने इनको और उनके साथियों को बुरी तरह से मारा यह तो स्पष्ट है कि जो व्यक्ति सड़कों पर प्रदर्शन में सम्मिलित हो वह पुलिस से झगड़ा हो जाने पर सब आपत्तियों को सहन करता है।
लालाजी ने भी जानबूझकर यह आपत्ति खरीदी थी किंतु फिर भी जिस ढंग से उन पर लाठियों से आक्रमण किया गया और बिना कारण जिस निर्दयता से व्यवहार किया गया इससे असंख्य भारतीयों को कड़ी चोटे लगी इन दिनों हम पुलिस के लाठीचार्ज के अभ्यस्त नहीं करें अतः हमारी अनुभूति इस समय तक निरंतर पार्श्विक अत्याचारों से कुंठित नहीं हुई थी।
कुछ महत्व पूर्ण लेख | लेखो के लिंक |
बटुकेश्वर दत्त आज़ादी के बाद क्या हुआ इनके साथ | लेख पढ़ें |
भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त का अदालत में दिया ब्यान | लेख पढ़ें |
आयुर्वेद की अनूठी चिकित्सा – सच्ची कहानी | लेख पढ़ें |
हमारे इतने बड़े नेता और पंजाब के सबसे उच्च पूजनीय और सर्वप्रिय पित्र बुजुर्ग के साथ यह व्यवहार अत्यंत लज्जा स्पद प्रतीत हुआ और दबे हुए क्रोध की एक लहर सारे भारतवर्ष में विशेषता उत्तर भारत में फैल गई हमारी व्यवस्था और तिरस्कार का क्या ठिकाना था हम अपने चुने हुए नेताओं के सम्मान की रक्षा नहीं कर सकते थे।
लाला जी के शरीर को जो हानि पहुंची थी वह कोई न्यून ना थी इसलिए कि इन्हें बहुत समय से हृदयरोग था और छोटे भी वहीं इनकी छाती पर लगाई गई थी निश्चित रूप से तो यह नहीं कहा जा सकता कि इस मार्ग का प्रभाव इनकी मृत्यु पर जो एक-दो सप्ताह के पश्चात हुई किसी अवस्था तक अवश्य पढ़ें इन के चिकित्सकों की यह सम्मति थी कि इन चोटों के कारण वे इतने शीघ्र मृत्यु के मुख में चले गये किंतु मेरे विचार में भी निसंदेह की शारीरिक चोट के साथ जो मानसिक कष्ट उन्हें हुआ इससे वे अत्यंत प्रभावित हुए।
इनका चित्र क्रोध और चिंता से व्याकुल था अपने व्यक्तिगत अपमान से अधिक उन्हें सारे राष्ट्र के अपमान का दुख था जो इस आक्रमण के कारण हुआ था। इस राष्ट्रीय अपमान का दुख सारे भारत के हृदय और मस्तिष्क को आच्छादित किए हुए था थोड़े ही दिन पीछे लाला जी का देहांत हो गया तो जनता ने इसका कारण लाठियों की चोटों का ठहराया जनता का हृदय उत्तेजना से परी पूरित हो उठा और दुख के स्थान पर प्रति हिंसा की भावना भड़क उठी।
भगत सिंह सारे भारत का प्यारा और आंखों का तारा इसलिए बन गया क्योंकि उसने अत्याचारी सांडर्स को गोली का निशाना बनाकर lala lajpat rai जी और सारे भारत की लाज रख ली इसलिए कुछ ही मास में पंजाब का प्रत्येक नगर व ग्राम यहां तक कि सारा उत्तर भारती भगत सिंह के नाम से गूंज उठा लाला लाजपत राय के खून का बदला लेने के कारण वीर भगत सिंह जी अमर हो गए।
साइमन कमीशन के बहिष्कार में छोटे खाने के पश्चात lala lajpat rai अखिल भारतवर्षीय कांग्रेस कमेटी के एक उत्सव में सम्मिलित होने के लिए दिल्ली पधारे थे। उस समय भी उनके शरीर पर चोट के चीन शेष थे और उनका कष्ट हुआ पीड़ा अभी तक दूर नहीं हुई थी लाला जी ने भी उस समय भाषण दिया था। लेखक (भगवान देव swami omanand saraswati) उस समय दिल्ली के सेंट स्टीफन हाई स्कूल में दशम श्रेणी में पढ़ता था ओ संस्था के प्रिंसिपल स्कॉट साहब ने जो स्कॉटलैंड का निवासी और देशभक्त था सारे स्कूल के विद्यार्थियों की यह कहकर छुट्टी कर दी थी कि।
“तुम्हारे देश का बहुत बड़ा व्यक्ति लाला लाजपत राय आज दिल्ली में आया है जाओ उसके दर्शन करो और व्याख्यान सुनो।”
कुछ महत्व पूर्ण लेख | लेखो के लिंक |
yog nidra क्या है विधि क्या है ? क्या चमत्कार होता है शरीर में | लेख पढ़ें |
ब्रह्मचर्य रक्षा के 30 उपाय | लेख पढ़ें |
चीनी और गुड़ में क्या अंतर होता है? | लेख पढ़ें |
रोग प्रतिरोधक शक्ति क्या है? | लेख पढ़ें |
नकली दूध मिलता है तो ज्यादा ताकत के लिए ये खाए | लेख पढ़ें |
लेखक का दुर्भाग्य था कि वह छुट्टी होने पर भी ना जाने किस कारण से वहां ना जा सका और पूजनीय लाला लाजपत राय जी के दर्शन और उपदेश श्रवण से वंचित रह गया।
लाहौर जाकर उन्होंने अपने साप्ताहिक समाचार पत्र पीपल में लेख माला लिखनी आरंभ की थी अभी पहला ही लेख निकला था दूसरे लेख के छपने से पूर्व भी लाला लाजपत राय जी इस संसार से विदा हो गए और अपनी अमर कृति देश में छोड़ गए।
जिस दिन लाला लाजपत राय जी की मृत्यु हुई उस दिन भी हमारे स्कूल के उसी प्रिंसिपल स्कॉट साहब ने फिर स्कूल के छात्रों को एकत्रित किया और सभा की। स्कॉट साहब ने लाला जी की मृत्यु पर शोक प्रस्ताव करते हुए उनकी आत्मा की सद्गति के लिए ईश प्रार्थना की और यह कहकर संस्था के सभी विद्यार्थियों और शिक्षकों की छुट्टी कर दी की
“मैं तो गिरजाघर में जाकर लाला जी की आत्मा की सद्गति के लिए ईश्वर से प्रार्थना करूंगा और साथ ही आप सब जो हिंदू हैं वह मंदिर में जाकर जो मुसलमान है वे मस्जिद में ईसाई गिरजा में जाकर उनकी आत्मा के लिए प्रार्थना करें”
इसी देशभक्त पादरी स्कॉट साहब की कृपा से 10 वीं श्रेणी में पढ़ते हुए ही मुझ पर देशभक्ति का रंग चढ़ा और मैं कांग्रेस की ओर झुकता ही चला गया वीर भगत सिंह को फांसी देने पर सन 1931 में कॉलेज छोड़कर कांग्रेस एवं देश सेवा के कार्य में जुट गया।
यदि आप मेरे कार्य को सहयोग करना चाहते है तो आप मुझे दान दे सकते है। दान देने के लिए Donate Now बटन पर क्लिक कीजिये।
भाई मै बस यही कहना चाहता हु की जो कार्य सरकार को करना है वो आप कर रहे हो बस ऐसे ही देश क़े यूवाओ को महान लोगों के बारे मे बताओ देश ये हमारा आर्यावत फिर से विश्वगुरु हो जायेगा। ओउम्।
Bahot accha jankari diye aapne sir…thank you so much sir
बहोत ही ज्ञानवर्धक जानकारी दी आप ने.
ऐसे ही और भी जानकारी देते रहे. धन्यवाद जी.