दांतों और मसूड़ों को मजबूत करने के उपाय ब्रह्मचर्य के साधन पार्ट3


दांतों और मसूड़ों को मजबूत करने के उपाय ब्रह्मचारी ही क्या प्रत्येक मनुष्य को प्रातः काल उठकर चक्षु स्नान उषा पान एवं सोच के पश्चात ऊपरी भाग को शुद्ध करना चाहिए रात्रि में सोकर जो प्रातः मनुष्य उठता है मुंह के अंदर जमा हुआ गंदा मल मिलता है जिससे मुंह और दांतों में से दुर्गंध आने लगती है दुर्गंध को दूर करना और दातों की शुद्धि करना अत्यंत आवश्यक है वेद भगवान की इस विषय में सबके लिए आज्ञा है कि तुम्हारे दांत निर्मल हो इसलिए हमारे ऋषियों ने प्रतिदिन दंत धवन दातुन करने का नियम बनाया है आयुर्वेद के प्रसिद्ध और प्राचीन शास्त्र चरक में लिखा है। दांतों और मसूड़ों को मजबूत करने के उपाय

प्रतिदिन दो समय कसैले, कटु तथा रसप्रधान वृक्ष की जिसके आगे भाग को चबाकर कूंची (बुरुश) के सामान कर लिया हो ऐसे दंतपवन दांतो से दंतमांस ( मसूड़ों ) को अभीघात ( चोट ) से बचाते हुए दातुन करें ।

दांतों और मसूड़ों को मजबूत करने के उपाय दातुन करने के लाभ

दांतों और मसूड़ों को मजबूत करने के उपाय प्रतिदिन दातुन करने से जिहवा, दांत और मुंह के अंदर का मल निकल जाता है दुर्गंध तथा विरसता नष्ट होते हैं और रुचि बढ़ती है उपर्युक्त गुण दातोन से तत्काल ही प्राप्त हो जाते हैं।

दातुन मुख की दुर्गंध और दूषित कफ को बाहर निकाल देती है मल आदि की चिकनाई को दूर करती तथा अन में रूचि और मन में प्रसन्नता उत्पन्न करती है।

दांतों और मसूड़ों को मजबूत करने के उपाय इन परमाणु से सिद्ध होता है कि मुख और दातों की शुद्धि के विज्ञान पर प्राचीन ऋषियों ने बड़ी भारी खोज की है और प्रतिदिन दातुन करने पर बल दिया है यह बहुत ही महत्वपूर्ण बात है क्योंकि मुख शरीर का वह अवयव है जिसके द्वारा हमारे पेट में जो भोजन पहुंचता है और इसमें दांत आदि अवयव भी वहीं रखे गए हैं जो भोजन को उदर तक पहुंचाने में सहायक होते हैं दांत भोजन को चबाकर पचाने योग्य बनाते हैं दांतों को भोजन चबाते समय जीभ भोजन को उलटने पलटने में सहायता देती है और इसका स्वाद भी बताती है। बोलना शब्द करना आदि भी मुख का कार्य है जिस प्रकार शरीर में मुख 1 आवश्यक अंग है उसी प्रकार मुंह में दांत भी बड़े महत्वपूर्ण हैं दांतों के द्वारा आयु का ज्ञान होता है इनसे स्वास्थ्य की अवस्था भी जानी जा सकती है जब तक दांत है तब तक ही भोजन का स्वाद आता है पीछे तो पेटी भरना होता है।दांतो से ही मुख की सुंदरता है दांतो के होने से मुख चेहरा भरा हुआ प्रतीत होता है दांतो के अभाव में चेहरा भी थक जाता है और गाल अंदर को थक जाते हैं मनुष्य की आकृति बिगड़ कर कुरूप हो जाती है। दांतों और मसूड़ों को मजबूत करने के उपाय

शब्दों का उच्चारण शुद्ध और स्पष्ट नहीं होता दांतो के नाम भी प्रथक प्रथक है जैसे दाने की लें और दांत हमारे दांत मुंह के जिस भाग में गड़े हुए होते हैं उसे मसूड़ा कहते हैं दांत दो बार निकलते हैं एक तो बाले काल के दूध के दांत जो आठ 10 वर्ष की आयु में ही गिर जाते हैं पुन: नए अन्न के दांत उत्पन्न होते हैं जो सावधानी रखने पर अंत तक कार्य देते हैं जो व्यक्ति 100 वर्ष से अधिक आयु भोगते हैं उनके तीसरी बार भी दांत उगते देखे गए हैं किंतु यह दांत निर्बल और बहुत छोटे होते हैं। दांतों और मसूड़ों को मजबूत करने के उपाय

दांतों और मसूड़ों को मजबूत करने के उपाय दातुन का परिमाण कितनी बड़ी दातुन करनी चाहिए

दातुन कितनी मोटी तथा लंबी होनी चाहिए इस विषय में महरिशी धन्वंतरी shushurt  में लिखते हैं

अर्थात दातुन 12 उंगली लंबी और सबसे छोटी अंगुली के समान मोटी और सरल होनी चाहिए वह गुथी हुई गांठगठीली और टेढ़ी मेढ़ी न हो। उसमें कोई छिद्र ना हो अर्थात किसी प्रकार का कीड़ा आदि ना लगा हो और विकार रही हो। जहां दो शाखाएं हो ऐसी गांठ वाली नए होनी चाहिए दातुन का अगला भाग मृत्यु होना चाहिए जिसकी अच्छी कूची बन सके और जिस वृक्ष की दातुन हो वह श्रेष्ठ युद्ध भूमि में उत्पन्न हुआ होना चाहिए इच्छा हुई जिस किसी वृक्ष की दातुन थोड़ी और करने लगे ऐसा करने से किसी विषय अथवा हानिकारक व्हिस्की भूल से दातुन की जा सकती है। दांतों और मसूड़ों को मजबूत करने के उपाय

इसलिए दातुन का एक ही स्थान पर ‘’विज्ञातवृक्षम’’ ऐसा विशेषण दिया है अर्थात जिस वृक्ष के दातुन अपनी प्रकृति के अनुकूल और लाभदायक हो उसकी दातुन करनी चाहिए अज्ञात वृक्ष की दातुन कभी ना करें आयुर्वेद के ग्रंथों में अनेक वृक्षों के दातुन का विधान है।

चरक में लिखा है किस वृक्ष के दातुन करें दांतों और मसूड़ों को मजबूत करने के उपाय

करंट कनेर आग मालती अर्जुन तथा आसन आदि वृक्ष तथा इनके समान गुणों वाले अन्य वृक्षों की भी तातुन करनी चाहिए इसी प्रकार महरिशी धन्वंतरी भी सुशुरत में लिखते हैं

कड़वे वृक्षों में नीम कसैले वृक्षों में खैर मधुरो में महुआ और कटु फेरस वालों में वृक्षों में करंज की दातुन श्रेष्ठ होती है इसी प्रकार एक अन्य स्थान पर लिखा है

आक, बड़, खेर, करंज, से बढ़कर करण और अर्जुन आदि उसी प्रकार कषाय कटु और चित्र वाले अन्य वृक्षों की दातुन ले और उसके अग्रभाग को चबाकर ऐसे मिलूं ऊंची बना ले कि उसे दांतो को खींचते समय मसूड़ों को रगड़ना पहुंचे इसी प्रकार कहीं ग्रंथों में एक ईमेल अपामार्ग कदंब आम्र बांस दिल अब और उधर आदि वृक्षों की दातुन करने का भी विधान है।

दांतों और मसूड़ों को मजबूत करने के उपाय दातुन किस वृक्ष की हो

दांतों और मसूड़ों को मजबूत करने के उपाय नीम की दातून

निघंटु में नीम के विषय में लिखा है नीम कड़वा शीतल सूजन और वायु का समन करता है नेत्रों के लिए हितकारी फिल्मी हित और विष नाशक है अत्यंत रक्तशोधक है इसी प्रकार के अनेक गुण और भी लिखे हैं इसीलिए नीम की दातून भी मसूड़ों वा दांतो के सब रोगों के लिए लाभदायक है पेट के कीड़े दूर करने वाली है। यूनानी इलाज की पुस्तक (इलाजुलगुरबा) मैं लिखा है जो मनुष्य नीम की दातुन करता है उसे कोई रोग नहीं होता और ना उसके दांतो में पीड़ा होती है रक्त के सभी दोष को दूर करके सर्वदा शुद्ध कर देती है ज्वर के रोगियों के लिए हित कारक है। भोजन में रुचि उत्पन्न करती है फोड़े फुंसियों से सुरक्षित रखती है गर्मी से बचाती है और कुपित कप का संबंध करती है उल्टी को रोकती है।पर मैं आदि वीर्य के रोगों के लिए लाभदायक है नेत्र ज्योति को पढ़ाती और रक्षा करती है रक्त दोष के रोगियों के लिए प्रतिदिन नीम की दातुन का प्रयोग बहुत अच्छा है और सामान्य लोगों के लिए वसंत ऋतु में अर्थात फाल्गुन वा चेत्र के दिनों में नीम की दातून बहुत अच्छी रहती है इससे रक्त संबंधी विकार नहीं होती।

महानीम बकायन की दातुन के भी लगभग कई लाभ होते हैं जो नीम की दातुन के बताए गए हैं।

दांतों और मसूड़ों को मजबूत करने के उपाय खदिर खेर की दातुन

कशेले वृक्षों में खदिर खैर की दातुन श्रेष्ठ मानी है खदिर का संस्कृत में एक नाम दंतधावन भी है भाव प्रकाश निघंटु में खदिर शीतल दांतो को हितकारी कड़वा, कदुवाज, कषेला और खुजली खांसी अरुचि, मेद (चर्बी) कृमि, प्रमेह, ज्वर, कुष्ठ सूजन पित्त रक्त विकार पांडुरोग कफ तथा कुष्ठ रोग को नष्ट करता है।

इसलिए जिसको कोटवा में मोटापा रोग हो और इसी प्रकार रख दो उसके रोगी और चर्म रोगियों को खैर वृक्ष की दातुन करनी चाहिए कबीर की दातुन मुंह के छालों और मसूड़ों की पीप को दूर करती है कफ प्रकृति वाले मोटे फूले हुए मनुष्य के लिए भी खैर की दातुन लाभदायक है किंतु इसका वृक्ष सब स्थानों पर नहीं होता इसलिए सर साधारण इससे लाभ नहीं उठा सकते।

दांतों और मसूड़ों को मजबूत करने के उपाय बबूल की दातुन

कषाय रस वाले वृक्षों में बबूल की कर का वृक्ष भारतवर्ष के सभी भागों में पाया जाता है इसकी दातुन पड़ा है सभी लोग करते हैंबबूल भी इसी का नाम है इसके गुणों पर दृष्टिपात करने से विदित होता है कि यह एक ऐसा वृक्ष है कि जिस की दातुन बिना भेदभाव के प्रत्येक मनुष्य कर सकता है क्योंकि यह सभी के लिए हित कारक है भावप्रकाश निघंटु में लिखा है

बबूल ग्राही और कफ और गर्मी तथा विष नाशक है बबूल कड़वा, काषेला, मीठा, चिकना, ठंडा, तीक्ष्ण, ग्राही आमातिसार और रक्तिसार को बंद करने कफ, कास, उष्णता, दाहा, वायु और प्रमह को दूर करने वाला है। बबूल का वृक्ष सभी स्थानों पर पाया जाता है और सभी प्रकृति वालों के अनुकूल होता है दातुन में जो गुण होने चाहिए वह सभी इसमें है इसलिए इसकी दातुन का प्रचार भारतवर्ष में प्राचीन काल से चलाता है आज भी भारत में शिक्षित और अशिक्षित और सभी मतों के अनुयाई इसकी दातुन का प्रयोग करते हैं यथार्थ में कीकर की दातुन में सारे ही गुण उठ उठ कर रहे हैं दांतो के लिए हितकारी तिक्त कषाय मधुर और कटुक राय चारों ही रस किस में पाए जाते हैं कीकर की दातुन जहां दांतो को अत्यंत शुद्ध करती है वहां साथ ही इसका प्रयोग पाचन शक्ति को बढ़ाता है।

दांतों और मसूड़ों को मजबूत करने के उपाय महुवे की दातुन

मीठे वृक्षों में महोबे की दातुन श्रेष्ठ मानी जाती है यह भूख को शुद्ध करती है और मुंह के छाले मूछों की उष्णता और सूजन को दूर करती है।

दांतों और मसूड़ों को मजबूत करने के उपाय करंज की दातुन

चर करे रस के वृक्षों में करंज की दातुन श्रेष्ठ होती है यह वृक्ष रक्त दोष और कफ को नष्ट करता है वर्षा ऋतु के पश्चात जब विषम ज्वर मलेरिया फैलता है उन दिनों में करंट की दातुन करने से मनुष्य विषम ज्वर से बचा रहता है।

दांतों और मसूड़ों को मजबूत करने के उपाय कचनार की दातुन

कचनार की दातुन कफ के रोग और कंठ के रोगियों के लिए विशेषकर कंठमाला के लिए अत्यंत लाभदायक है।

दांतों और मसूड़ों को मजबूत करने के उपाय अर्जुन की दातुन

अर्जुन की दातुन ह्रदय रोगियों के लिए अत्यंत लाभदायक है या मसूड़ों को शुद्ध करती और दांतो को शुद्ध बनाती है।

दांतों और मसूड़ों को मजबूत करने के उपाय तेजबल की दातुन

यह प्रसिद्ध पर्वतीय वृक्ष है इसकी दातुन बसंत ऋतु में करनी चाहिए इसका प्रयोग करने से कब के रोग नहीं सताते इसकी दातुन का शोर समाज के रोगियों को बड़ी लाभदायक है यह मुख की दुर्गंध को दूर करती पाचन शक्ति को बढ़ाती और कंट्रोल नाशक है और भी अनेक लाभ है किंतु यह सब स्थानों पर ना मिलने से सब मनुष्य लाभ नहीं उठा सकते।

दांतों और मसूड़ों को मजबूत करने के उपाय पीपल की दातुन

पीपल का वृक्ष भारत के सभी भागों में पाया जाता है यह मीठा कशाला शीतल भारी रख दोष जलन उष्णता कब और फोड़े फुंसियों को दूर करने वाला है रंग को निहारता है शरीर का सूखना और पित जवरो के लिए अत्यंत लाभदायक है।

दांतों और मसूड़ों को मजबूत करने के उपाय करने वाली विशेष मंजन बनाने की विधि

कभी दातुन ना मिलने पर किसी विशेष अवस्था में दांतो को शुद्ध करने के लिए कुछ लाभदायक ही योग पाठकों के लाभार्थी लिख देते हैं इनका स्वस्थ अवस्था में भी दातुन के समान लाभ होता है।

मंजन का सरल योग

दांतों और मसूड़ों को मजबूत करने के उपाय इस मंजन का साधारण अवस्थाओं में दातुन के स्थान पर भी प्रयोग किया जा सकता है यह सर्वत्र बिना किसी मुल्ले के प्राप्त हो सकता है योग बहुत ही अच्छा है देशी गोवंश के गोबर के उपलों की भसम यानी की राख लेकर उसको अच्छे से कपड़े छान कर ले यदि जंगल में चरने वाली गोवंश का गोबर मिल जाए उसकी राख मिल जाए तो और भी अच्छा है वही मंजन है इसको मंजन की आवश्यकता पड़ने पर दांत और मसूड़ों पर मंजन की भांति मल कर शुद्ध जल से कुल्ला करें हींग लगे ना फिटकरी रंग चोखा दे वाली बात इस मंचन पर घटती है। यह बिना पैसे का मंजन दांतो को इतना शुद्ध कांति में चमकीला बना देता है कि जिसके आगे बहुत मूल्यवान लहंगे मंजन भी फीके पड़ जाते हैं सबसे बड़ी बात यह है कि इसके प्रयोग से दांतों के कीड़े दूर हो जाते हैं दांत और मसूड़े सर्व प्रकार के मनुष्य शुद्ध और पवित्र होकर सदैव रोगों से सुरक्षित रहते हैं दांतो की पीड़ा और रोगों के दूर करने में यह रामबाण है।

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बड़ी-बड़ी रसायनशाला और और दालों के स्वामी तथा बड़े-बड़े वेद भी इसका प्रयोग करते हैं दांतों की पीड़ा दूर करने में यह जादू का असर करती है।

इसी में स्वामी ओमानंद जी अपनी कुछ सत्य घटना लिखते हैं वह लिखते हैं कि गुरुकुल रावल की घटना है एक आर्य सन्यासी दांतो की पीड़ा के कारण अत्यंत कष्ट में थे उनको किसी प्रकार भी शांति ना होती थी और कई दिन से सोए नहीं थे वह भी कार्य वर्ष वहां गए हुए थे इस घोर कष्ट के कारण उनके मुंह से जो शब्द निकल रहे थे उन्होंने मेरी नींद रा भंग कर दी मैंने उस समय जैसी भसम प्राप्त हुई उसका प्रयोग कर दिया उसी समय वे शांत होकर सो गए और उनका कष्ट दूर हो गया।

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ब्रह्मचर्य के साधन पार्ट3

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