चोटी और जनेऊ का मतलब क्या है ? क्या महत्व है शिखा और जनेऊ का आज इस छोटे से लेख में आप ये महतवपूर्ण जानकारी जान पाएंगे. काफी भाई पूछते है चोटी का महत्व क्या है जनेऊ का महत्व क्या है. तो इस प्रशन का उत्तर आपको एक विद्वान सन्यासी के शब्दों में बताता हूँ.
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चोटी अर्थात शिखा और यज्ञोपवीत अर्थात जनेऊ
ये दोनों विद्या प्राप्ति के सूचक चिन्ह हैं । अर्थात जो व्यक्ति अभी विद्या प्राप्ति कर रहा है , जिसकी विद्या अभी पूरी नहीं हुई , उसे यह दोनों चिन्ह रखने पड़ते हैं । इससे समाज को यह सूचना मिलती है कि अभी यह विद्यार्थी है , इसकी विद्या पूरी नहीं हुई ।
विद्या पूरी होने का तात्पर्य क्या है
विद्या पूरी होने का तात्पर्य है कि ईश्वर, जीव, प्रकृति , इन 3 पदार्थों का पूरा ठीक ठीक ज्ञान होना । जिसको यह ज्ञान पूरा प्राप्त हो जाता है तो उसे वैराग्य हो जाता है। फिर वैराग्य प्राप्त करके वह व्यक्ति संन्यास ले लेता है जब ले लेता है तब उसके यह दोनों चिन्ह हटा दिए जाते हैं । और उसके वस्त्रों का रंग भी गेरुआ या केसरी हो जाता है । यह भी समाज की सूचना के लिए है।
तब शिखा और यज्ञोपवीत हटाकर , गेरवे वस्त्र धारण करने से लोग समझ लेते हैं कि इस व्यक्ति की विद्या पूरी हो चुकी है । अब यह संन्यासी हो गया है। अब इसको शिखा और यज्ञोपवीत धारण नहीं करना है। इसलिए संन्यासी लोग शिखा और यज्ञोपवीत नहीं रखते .
तीन आश्रम वाले अर्थात ब्रह्मचारी गृहस्थी और वानप्रस्थी , इनकी विद्या अभी अधूरी है। इसलिए तीनों को शिखा और यज्ञोपवीत रखना पड़ता है , विद्या पढ़ते रहना पड़ता है। और यज्ञ आदि कर्म भी करना पड़ता है । जब यह सब करते करते तीन आश्रम वालों को पूरा ज्ञान हो जाता है तब वैराग्य एवं संन्यास को धारण करते हैं और इन दोनों शिखा तथा यज्ञोपवीत को छोड़ देते हैं। – स्वामी विवेकानंद परिव्राजक
For the success of this mission we need to start many more Gurukul, where student could get the Yogik knowledge accompanying with science.
This way from the childhood of children if we impart this knowledge then only it will succeed to control subconscious mind of students to become devoted Aarya.
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