योग क्या है
प्रत्येक व्यक्ति सदा दुःखों से छूटकर नित्यानन्द को प्राप्त करना चाहता है, परन्तु ऐसा आनन्द योग के बिना संभव नहीं है, अतः: प्रत्येक व्यक्ति के लिए योग का अनुष्ठान अनिवार्य है।
आज आप इस लेख के माध्यम से जानेगे की योग क्या है काफी व्येक्ती योग को गलत लिखते है और बोलते है की योगा क्या है जबकि इसे बोला जाता है योग।
योग का प्रत्येक व्यक्ति के साथ सम्बन्ध
प्रत्येक व्यक्ति सदा दुःखों से छूटकर नित्यानन्द को प्राप्त करना चाहता है, परन्तु ऐसा आनन्द योग के बिना संभव नहीं है, अतः: प्रत्येक व्यक्ति के लिए योग का अनुष्ठान अनिवार्य है। चाहे पाँच या आठ वर्ष का बालक हो, चाहे युवा हो और चाहे वृद्ध हो, स्त्री हो वा पुरुष हो प्रत्येक अवस्था में प्रत्येक व्यक्ति की उन्नति का आधार योग है ।
व्यापर की नजर से भी सभी मानवो के साथ योग का सीधा सम्बन्ध है। चाहे आप खेतीबाड़ी करने वाले हो या अध्यापक , वैध हो या किसी भी तरह का व्यवसाय करने वाला।
समस्त व्यवसायों में योगाभ्यास मनुष्यमात्र को सफलता प्रदान करता है, क्योंकि अविद्या, असत्याचारण, मिथ्या-उपासना और सभी दुःखों का विनाश तथा विद्या, सत्याचरण, सत्योपासना और ईश्वर के नित्यानन्द को प्राप्ति योग से ही होती है।
योग का किसी भी सम्प्रदाय व देश से कोई सम्बन्ध नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति योग के माध्यम से अपने जीवन को उन्नत बना सकता है, इसमें किसी भी प्रकार की बाधा नहीं है।
हाँ, योग के आठ अंगो का आचरण किये बिना कोई भी मनुष्य वास्तविक योगी नहीं बन सकता। वास्तविक योगी बने बिना ईश्वर का साक्षात्कार नहीं होता तथा ईश्वर-साक्षात्कार के बिना मनुष्य-जीवन सफल नहीं होता।
योग के आठ अंग क्या हैं ?
Yog के आठ अंग ये है- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। जो व्यक्ति मन, वचन और शरीर से इन आठ अंगों का पालन करता है, वह अपने जीवन में पूर्णरूपेण सफल हो जाता है।
योगांगों के आचरण को छोड़कर मानव-जीवन की
सफलता का और कोई भी कारण नहीं है, क्योंकि योग द्वारा ईश्वर-साक्षात्कार से नित्यानन्द की प्राप्ति और समस्त क्लेशों की निवृत्ति होती है। लोकिक सुख और सुख के साधनों से ऐसी सफलता कभी भी सम्भव नहीं है।
योग की परिभाषा क्या है ?
वर्तमान काल में भूगोल के अनेक देशों में योग का बहुत प्रचार-प्रसार हुआ है और बहुत-सा साहित्य भी प्रकाशित किया गया है। इस समय योग के अनेक नाम प्रचलित है,
जैसे कि राजयोग, हठयोग, ज्ञानयोग, कर्मयोग, ध्यानयोग, सहजयोग, जपयोग इत्यादि। वास्तव में जिस योग से ब्रह्म की प्राप्ति अथवा मोक्ष = मुक्ति अपवर्ग की प्राप्ति और सभी दुःखों का नाश तथा नित्यानन्द मिलता है,
ऐसा योग तो एक ही है, अनेक नहीं। हाँ, उसके नाम अनेक हो सकते है जैसे कि ईश्वर एक ही है और उसके नाम अनेक हैं। योग शब्द से अनेक अर्थ लिये जा सकते हैं, परन्तु यहां पर अनेक अर्थों पर विचार नहीं किया जाएगा।
इस लेख में तो उसी योग पर विचार किया जाएगा जो वैदिक योग है, जिसका आचरण आदि-सृष्टि से ऋषि लोग करते और करवाते आये हैं। इसी का नाम पातंजल योग भी है।
“योगश्चित्तवृत्तिनिरोध:। ‘ (योग दर्शन १-२)
चित्त की वृत्तियों को रोक देना योग है। इसी का दूसरा नाम समाधि भी है। चित्त में विविध प्रकार की वृत्तियाँ/तरंगे उभरती है, उनको वृत्ति अर्थात् व्यापार कहते हैं।
चित्त की सभी वृत्तियों की संख्या की परिगणना अत्यंत कठिन है। चित्त वृत्तियों को एक दृष्टि से देखा जाए तो वे दो विभागों में विभाजित हो जाती हैं। एक क्लिष्ट और दूसरी अक्लिष्ट।
जो वृत्तियाँ कलेशों को = दुःखों को उत्पन्न करती है और अज्ञान की ओर ले जाती है वे क्लिष्ट होती है तथा जो सुख को उत्पन करती है और ज्ञान की तरफ ले जाती हैं, वो अक्लिष्ट वृत्तियाँ होती है ।
यदि आप वृत्तियों को ज्ञान की नजर से देखेंगे तो ये पाँच भागों में हो जाएंगी । वो पाँच विभाग है- स्मृति, निद्रा, विपर्यय, प्रमाण, विकल्प। जब आप इन वृत्तियों को रोक लेते है तो योग की सिद्धि प्राप्त होती है। योग के दो भेद होते है- एक सम्प्रज्ञात और असम्प्रज्ञात !
सम्प्रज्ञात योग को सबीजसमाधि, सम्प्रज्ञाससमाधि तथा चित्त की एकाग्रता भी कहते है और असम्प्रज्ञात योग को निर्बीजसमाधि, असम्प्रज्ञाससमाधि तथा चित्त की निरुद्धावस्था भी कहते हैं।
सम्प्रज्ञात योग व असम्प्रज्ञात योग में भेद ये है सम्प्रज्ञात योग में साधक अग्नि, जल, भूमि, आदि स्थूल पदार्थों और तन्मात्रादि के सूक्ष्म पदार्थों में अपने चित्त को लम्बे समय तक एकाग्र करने में सफल हो जाता है और प्रकृति से बने हुए पदार्थों के वास्तविक स्वरूप को जानकर अपने तथा अन्यों के अनेक प्रयोजन सिद्ध करता है।
जैसे भौतिक वैज्ञानिक प्रकृति से बने स्थूल और सूक्ष्म पदार्थों को यन्त्रों द्वारा जानकर अपने और दूसरों के अनेक प्रयोजनों को सिद्ध करते हे वैसे, ही योगी लोग भी करते है।
इन दोनों में इतना अन्तर है कि योगी इन पदार्थों का परिज्ञान मुख्यरूपेण चित्त के द्वारा करते हैं और भौतिक वैज्ञानिक मुख्यरूपेण यन्त्रों के द्वारा करते है। सम्प्रज्ञाससमाधि में साधक छोटे पदार्थ में और बड़े-से-बडे पदार्थ में लम्बे कालपर्यन्त अधिकारपूर्वक अपने चित्त को रोकने में सफल हो जाता है।
सम्प्रज्ञात योग के सिद्ध होने पर योगी यह अनुभव करता है कि मैं बन्धन से छूटकर स्वतन्त्र हो गया हूँ और मेरा बहुत-सा अज्ञान नष्ट हो गया है, इत्यादि।
सम्प्रज्ञाययोग के सिद्ध होने पर |असम्प्ज्ञातंयोग की सिद्धि सम्प्रज्ञातयोग की सिद्धि होने पर योगी सम्प्रज्ञातयोग से भी विरक्त हो जाता है, अर्थात् सम्प्रज्ञायोग में भी वह दोष देखने लगता है और उसका परित्याग कर देता है।असम्प्रज्ञात योग की सिद्धि होने पर योगी को ईश्वर का साक्षात्कार अर्थात् प्रत्यक्ष होता है और उसे दुःखरहिंत विशेष आनन्द की प्राप्ति होती है।
इस अवस्था में योगी यह अनुभव करता है कि प्राप्त प्रापणीयम्’ अर्थात् जो प्राप्त करने योग्य था, वह प्राप्त हो गया है, अब और प्राप्त करने योग्य कोई वस्तु शेष नहीं रही है। इस प्रकार से मुख्यरूपेण योग के दो स्तर हैं।
सम्प्रज्ञातयोग प्रारम्भिक है और असम्प्रज्ञातयोग ऊँची-अंतिम अवस्था है। ये योग की दो नीची और ऊंची अवस्थाएँ हैं, स्वतन्त्र अर्थात् पृथक-पृथक् दो योग नहीं है।
सम्प्रज्ञाययोग असम्प्रज्ञातयोग का साधन है और असम्प्रज्ञातयोग उसका साध्य है, अर्थात् सम्प्रज्ञातयोग की सिद्धि किये बिना असम्प्रज्ञाययोग की सिद्धि नहीं हो सकती, ऐसा समझना चाहिए। ।
योग में चित्त का परिज्ञान आवश्यक है
योग के वास्तविक स्वरूप को जानने के लिए चित्त के विषय में जानना आवश्यक है। चित्त के स्वरूप को ठीक प्रकार से जानकर ही मनुष्य योगमार्ग में प्रवेश कर सकता है, अन्यथा नहीं, क्योंकि चित्त की वृत्तियों को रोकना ही योग है। चित्त एक जड वस्तु है क्योंकि वह जड़ वस्तुओं के संयोग से बना है अर्थात् चित्त का उपादानकारण जड़ है, अतः चित्त भी जड़ है अर्थात् ज्ञानरहित है।
जैसे कि रोटी जड है, क्योंकि वह जड़ वस्तु आटे से बनी है, वैसे ही चित्त भी सत्त्व, रज, तम इन तीन वस्तुओं से बना है, इसी कारण से वह जड़ है। जो वस्तु जड़ वस्तुओं के संयोग से बनेगी, वह चेतन अर्थात् ज्ञानुकत कभी भी नहीं होगी। क्योंकि अभाव से भाव की उत्पत्ति कभी भी नहीं होती और भाव के कारण अभाव भी की उत्पत्ति कभी भी नहीं हो सकती ।
चित्त जीवात्मा का अन्त:करण है अर्थात् आन्तरिक साधन है। पूर्वकाल में देखी हुई वस्तुओं का अथवा सुनी हुई बातों का जीव चित्त के द्वारा स्मरण करता है। बाह्य इन्द्रियों के साथ चित्त को सम्बद्ध करके जीव बाहर के विविध पदार्थों का ज्ञान प्राप्त करता है।
इस प्रकार से जीव कार्यों का सम्पादन करता है। जीव चेतन है अर्थात् ज्ञानवान है और चित्त ज्ञानहित है। जीव शुभ और अशुभ कर्म करने में स्वतन्त्र कर्त्ता है और चित्त जीव का साधन है। जैसे कि कार साधन है और कार को चलाने वाला कार के चलाने में स्वतन्त्र कर्ता है। कार जड़ है और कार का चालक चेतन है, ऐसा जानना चाहिए।
योगाभ्यासी व्यक्ति चित्त को जड समझकर ही उसका प्रयोग करें
योगाभ्यासी व्यक्ति चित्त को जड़ समझकर ही सांसारिक कार्यों को सिद्ध करे और जड़ समझकर ही चित्त के द्वारा योग को भी सिद्ध करे। जो व्यक्ति चित्त को चेतन मानकर कार्यों को करता है, उसे सफलता नहीं मिलती। चित्त को चेतन मानने पर व्यक्ति जो कार्य करने योग्य है, उन्हें नहीं कर पाता और जो कार्य करने योग्य नहीं हैं अर्थात् हानिकारक हैं, उन्हें कर लेता है।
जैसे कि एक व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को बुरी दृष्टि से देखना नहीं चाहता, परन्तु चित्त को चेतन मानकर वह दूसरे व्यक्ति को बुरी दृष्टि से नही देखना चाहता,परन्तु मेरा मन नहीं मानता, अतः ऐसा करता हूँ।
यह अवस्था जड् चित्त को चेतन मानने से उत्पन्न होती है। जब व्यक्ति चित्त को जड़ समझता है तो उसे बुरे कार्यों से रोक कर अच्छे सांसारिक कार्यों को सिद्ध करता हुआ योग को प्राप्त करने में सफल हो जाता है। मन को जड़ समझने पर ही अनेक मानसिक क्लेशों-चिन्ताओं को रोका जा सकता है अन्यथा नहीं।
योगाभ्यासी व्यक्ति को यह बात अच्छी प्रकार से समझ लेनी चाहिए कि कौन सी वस्तु जड़ है और कौन सी वस्तु चेतन है। इस जड़-चेतन के परिज्ञान से लौकिक और योगमार्ग में आने वाली अनेक बाधाएँ दूर हो जाती है।
संक्षिप्त रूप से जड़ और चेतन का लक्षण यह जानना चाहिए कि जिस वस्तु में ज्ञान है, वह चेतन है और जो वस्तु ज्ञानरहिंत है, वह जड़ है। जैसे कि मनुष्य चेतन है और पत्थर जड़ है। चेतन पदार्थ की यह विशेषता है कि वह अनुभव करता है और जड॒ पदार्थ अनुभव नहीं करता। चेतन पदार्थ सुख-दुःख, हानि-लाभ, अच्छे-बुरे को समझता है, पर जो जड़ पदार्थ है वो इन बातों को जानता नहीं है।
जड् और चेतन वस्तुओं का विभाग
योग क्या है ईश्वर और जीव चेतन पदार्थ हैं और प्रकृति जड़ पदार्थ है। ईश्वर एक ही है और जीव अनेक है। सांख्यदर्शन की भाषा में सत्त्व, रज और तम इन तीनों को मिलाकर प्रकृति कहते है। इन तीनों को
लेकर ईश्वर इस संसार की रचना करता है। इन तीनों से बने हुए कार्य (संसार) को विकृति कहते है। सत्त्व, रज और तम की साम्यावस्था का नाम प्रकृति और विषमावस्था का नाम विकृति है।
प्रकृति से बने सभी पदार्थ जड़ है अर्थात् ज्ञानरहित है। संक्षिप्त रूप से ईश्वर और जीव चेतन है और प्रकृति तथा प्रकृति से बने हुए सभी पदार्थ जड॒ है, ऐसा समझना चाहिए। जो व्यक्ति जड़ और चेतन पदार्थों को ठीक प्रकार से जानकर उनका उचित प्रयोग करता है, वह आवश्यक लौकिक कार्यों को सिद्ध करके पुनः योग के द्वारा ईश्वर का साक्षात्कार करके अपने और अन्यों के जीवन को सफल बनाने में समर्थ हो जाता है।
ऐसी सफलता इससे भिन्न प्रकार का व्यक्ति कभी भी प्राप्त नहीं कर सकता। इसलिए जड़ और चेतन का विशुद्ध ज्ञान प्राप्त करके अपने कर्म और उपासना को भी विशुद्ध बनाना प्रत्येक मनुष्य का मुख्य कर्त्तव्य है। इस विधि के बिना मनुष्य जीवन सफल – : नहीं हो सकता।
कमेंट में बताये ये लेख आपको केसा लगा
BHAI itni full details me video bnate ho or itni full detail me article likhte ho or itna acha dil jeet lete ho aap
ओ३म भाई 🙏 🙂
जितनी भी जानकारी आपने इस आर्टिकल में दी हैं ! वह बहूत आवश्यक हैं आज के युवाओं के लिए ! और जिस गहनता से आप लिखते हों, उस से तो यही सिद्ध होता है कीआप एक चित की ओर बढ़ रहे हो ! जल्द ही आपका ईश्वर से साक्षात्कार हो, जिसकी भी आप कल्पना करें ईश्वर के द्वारा आपको वो बड़ी सरलता से मिले और इस आर्टिकल के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद , ओम आर्यावर्त 🚩🚩🚩🚩
आपने जो दंड कसरत बताइ है एक से दस तक इस से वजन बढ़ सकता है मुझे कम करना है
इस दंड से आपका वजन भी कम होगा ये आपके भोजन पर निर्भर करेगा , आप सफ़ेद नमक के स्थान पर सेंधा नमक खाओ, कच्ची सब्जिया सलाद आदि ज्यादा खाओ दालों को उबाल कर खाओ शरीर से फालतू की चर्बी खतम हो जाएगी मोटापा कम होगा फिर शरीर धीरे धीरे मजबूत बनने लगेगा
Bahut hi achhi jankari di hai
बोहत ही अच्छी जानकारी दी भाई आपने. योग को पूरा खोल के रख दिया. जिस तरह से आप अभी युवाओं को जाकरूक कर रहे हो ऐसे ही करते रहे हमारे सारे आर्य भाई तो एक दिन ये हमारा भारत देश बदलेगा जरूर.
ओम जी भैया,
भैया महिलाओ के लिऐ भी ञान प्रदान कीजिऐ।आपकी अति कृपा होगी।
आपके अतुलनीय मारगदरशन के लिऐ आपको बहुत बहुत आभार
ओ३म् नमस्ते बहन जी
मै जरूर एक अच्छा सा लेख लिखूंगा