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सवतंत्रता का आवाहन (आहवान) Ram Prasad Bismil Ki Shayari
(१)
किया है हृदयासन त्यार, तुम्हारे आने भर की देर है
अगर कुछ वाहन हो दरकार, खड़ा है साहस बनकर शेर।
करेंगे सेवा हम सब दास, तुम्हें देंगे सब भांति सुवास,
तुम्हारा लेकर नाम निराश, तोड़कर सारे बन्धन पाश।
सत्य का भण्डा लेकर वीर, चलेंगे श्रीचरणों के साथ,
पहन कर प्रभापूर्ण प्रिय चीर, देवि, अब आओ करो सनाथ ॥
२
ज्ञान की धरी आरती साज, भारती करती है गुणगान,
ध्यान सर डूबा हुआ समाज, कमल पर पद है मधुप समान |
चढायेंगे अक्षत ले श्लीश, करेंगे प्राणों का बलिदान,
रहेगा देता जो जगदीश, करेंगे वह सब’ कुछ कुर्बान |
चरण तब धोयेंगे सस्नेह, डालकर सुदृढ़ प्रेम का पाथ,
तुम्हारी ही होगी यह देह, देवि ! अब आश्रो ! करो सनाथ ।।
(३)
बहुत हम झेल चुके हैं कष्ट, तुम्हारे विना बने पर दास,
हुए श्रीभ्रष्ट भाग्य के नष्ट, हो रहा पद-पद पर उपहास।
यातना यम की नरक निवास, नहीं क्या-क्या सह डाला हाय,
घोर दारिद्रय कठिन उपवास, किन्तु मुंह से न निकला हाय ।
करो अब दया देखकर दीन, बढाओ मां |! करुणा का हाथ,
बिना जल कैसे जीवे मोन, देवि श्रब आओ ! करो सनाथ ॥
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जननि ! प्रतिभा का करो प्रकाश, ह्रदय में भर दो वह उत्साह,
करे जो निंध निराशा नाश, और जिसमें हो प्रबल प्रवाह ।
बहा दे तन में जो नव रक्त, मिटादे हृदयों की जो दाह,
बनादे हमें तुम्हारा भक्त, निकलने दे न मुखों से आह।
हिलादें हम भूमि आकाश, गान कर-कर के तव गुणगाथ,
और सब जगत् कहे शाबास, देवि ! श्राओ ! करो सनाथ ॥।
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