Dhyan Kaise Kare
ध्यान कैसे करें यानी आप भी शांति की खोज में है। अपनी एकाग्रता अपनी नाक के दोनों छिद्रों पर लगाएं वहां सांस के आने जाने को देखते रहें मन की आँखों से साथ में ये भाव रखे की ईश्वर आपको देख रहा हैे।
हम ध्यान कैसे करें ये सवाल मुझसे काफी भाई पूछते हैं। ध्यान के क्षेत्र में जो कुछ मैंने सीखा है जिससे मुझे लाभ मिलता है। वह सब आपको यहां बता दूंगा ब्रह्मचर्य के फायदे उसे ही मिलते हैं जो ध्यान का अभ्यास करता है।
लेख भले ही थोड़ा बड़ा हो जाए परंतु आपका जो ज्ञान है वह बहुत अधिक बढ़ने वाला है नए व्येक्तियो को लक्षित करके ये लेख लिखा है और इस लेख को पढ़ने के बाद आप ये जान जाएँगे की ध्यान कैसे करें कमेंट के माध्यम से मुझसे सवाल पूछ सकते हैं मैं आपके सवाल का उत्तर दूंगा।
ध्यान की प्राचीन विधि जो हमारे श्रेष्ठ पूर्वज करते आए थे उसी के बारे में इस लेख में बाते करेंगे, मेरा सबसे रुचिकर विषय ध्यान ही रहा है बचपन में जब भगवान शिव के चित्र को देखा करता था तो सोचता था आखिरी आंखें बंद करके ऐसे बैठे हुए कर क्या रहे हैं भगवान शिव।
उस समय मेरे सवालों का जवाब देने वाला मेरे आस पास कोई नहीं था किसी से मैंने पूछा ध्यान विषय में तो उसने मुझे डराते हुए बोल दिया कि ध्यान करने से मनुष्य पागल हो जाता है, किसी ने नहीं बताया की ध्यान करते कैसे हैं असल में किसी को पता ही नहीं था ध्यान केंद्रित करने के लिए क्या करें? सही विधि क्या है।
जब मेरी आयु लगभग 11 साल की थी तो मेरे पड़ोस में आसाराम का शिष्य आया हुआ था उसने मुझे ब्रह्मचर्य के बारे में बताया ओर एक आसन बताया जिसका नाम पश्चिमोत्तानासन है।
बस मुझे ध्यान, योग, के नाम पर यही एक आसन पता था, और रोज शाम को जब खेतों में दौड़ लगाने जाता और वापस आकर अपने गांव की नहर के पास बडके पेड़ के नीचे इसी आसन को अधिक करता था और मेरे दूसरे मित्र दंड बैठ लगाते और मैं इस आसन का प्रेमी हो गया था, लेकिन ओम ईश्वर के ध्यान का तरीका क्या है ये नही पता था।
साल 2010 में जाना ध्यान कैसे करें?
साल 2010 में योग के क्षेत्र में आया तब जाना की वास्तव में ध्यान कैसे करते हैं उस समय मैंने अलग अलग ध्यान की विधियां सीखी जैसे विपश्यना ध्यान, सुदर्शन क्रिया, क्रिया योग की कुछ विधियां परंतु संपूर्ण क्रिया योग नहीं सीख पाया था।
फिर कुछ तंत्र की क्रिया एक युवक से मित्रता हुई थी उसने मुझे बताया था की रात को जब सब सो जाएं 12:00 बजे के आसपास काली माता के चित्र को अपने सामने रख कर दिया जलाकर और एक माला के साथ कुछ मंत्रों का जाप करना है जो उसने मुझे बताए थे मैंने कुछ दिन ऐसा किया परंतु फिर मन में ऐसा आभास हुआ कि यह सब करने का कोई लाभ नहीं है तो मैंने उस क्रिया को छोड़ दिया।
फिर 2013 के आस पास आर्यसमाज से संपर्क हुआ और आर्य समाज के जो विद्वान हैं उनसे और उनकी पुस्तकों से महान ऋषि पतंजलि जी का बताया ध्यान है वह सीखा यम नियम पर गंभीरता से चिंतन किया।
इन सब को सीखने के बाद मैं आखरी निर्णय पर पहुंचा की भगवान बुध की ध्यान विधि विपश्यना और महर्षि पतंजलि का अष्टांग योग इन दो विधियों में वास्तव में दम है इन दोनों विधियों का अलग-अलग अभ्यास करके देखा और लाभ हुआ आज आपको इन दोनो श्रेष्ठ विधि में से पतंजलि योग दर्शन की विधि के बारे में सिखाऊंगा।
ध्यान में सहायक यम नियम क्या होते हैं ?
पहले आपको यम नियम के बारे में कुछ जानकारी होना बहुत जरूरी है क्योंकि बिना यम नियम की जानकारी के आप कभी भी योग के क्षेत्र में आगे बढ़ ही नहीं सकते हैं जो आपको यम नियम के बारे में नहीं बताए तो समझ ले कि वह महामूर्ख और महाधूर्त है जो खुद तो सफलता प्राप्त नहीं करना चाहता आपको भी भटकाना चाहता है।
यहां मैं यम नियमो के बारे में विस्तार से नही लिखूंगा बस कुछ मुख्य मुख्य बातें बताऊंगा यम नियमों पर विस्तार से किसी और दिन लेख लिखूंगा। भगवान बुद्ध की ध्यान विधि विपश्ना में भी यम नियम पर बहुत अधिक जोर दिया जाता है और मह्रिषी पतंजलि के योग दर्शन में भी यम नियमो पर जोर दिया गया है तो आप सभी इसकी गंभीरता को समझें।
ध्यान में सहायक यम नियम ये हैं? (Dhyan Me Sahayak Yam Niyam)
- सत्य बोलना।
- मन वचन कर्म वाणी से हिंसा नही करना।
- ध्यान में सहायक पुस्तके पढ़ना
- विद्वान सन्यासियों को सुनना।
- ब्रह्मचर्य का पालन करना वीर्य रक्षा आदि।
- फैशन से दूर रहना सादा श्रेष्ट जीवन जीना।
- मोन का पालन करना यानी कम बोलना कभी कभी 1 या 2 दिन मोन रहना बहुत से साधू संत तो महीनो सालो मोन रहते हैं।
- ईश्वर पर्णिधान बनाकर रखना।
ये कुछ मुख्य मुख्य बाते आपको बता दी इनका जितना पालन करेंगे उतना ही अधिक लाभ बढ़ता जाएगा.
ईश्वर प्रणिधान कैसे करें?
मह्रिषी पतंजलि जी के अनुसार यदि आप ध्यान सीखना चाहते हैं तो आपको ईश्वर प्रणिधान को जानना बहुत ही जरूरी है. वेद अनुसार ईश्वर क्या है, वो कोन है, रहता कहां है?, पहले इसके बारे में जान लेते हैं.
मह्रिषी स्वामी दयानंद जी आर्यसमाज के नियम 1 में वेद अनुसार ईश्वर के बारे में लिखते हैं की
- ईश्वर ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरूप,
- निराकार,
- सर्वशक्तिमान,
- न्यायकारी,
- दयालु,
- अजन्मा,
- अनन्त,
- निर्विकार,
- अनादि,
- अनुपम,
- सर्वाधार,
- सर्वेश्वर,
- सर्वव्यापक,
- सर्वान्तर्यामी,
- अजर,
- अमर,
- अभय,
- नित्य,
- पवित्र
- और सृष्टिकर्ता है, उसी की उपासना करनी योग्य है।
अब हम ईश्वर प्रणिधान कैसे बनाए ये जानते हैं
जब आप ध्यान करने बैठे तो ऊपर बताए ईश्वर के गुणों में से किसी एक या दो गुणों का चिंतन करें जैसे जब मैं ध्यान के लिए बैठता हूं तो मन में यह दोहराता हूं।
हे ईश्वर आप सर्वव्यापक हैं आप मेरे चारों ओर हैं मुझ में भी हैं प्रत्येक स्थान पर है और इसीलिए आप न्यायकारी हैं मेरे मन में क्या चल रहा है क्या विचार चल रहे हैं जो घटना होने से पहले क्रिया होती है उसे आप भली प्रकार जान रहे हैं इसीलिए तो आप उचित उचित न्याय करते हैं और किसी के साथ अन्याय नहीं करते और इसीलिए आपको न्यायकारी कहते हैं।
इस प्रकार मैं इन गुणों से ईश्वर पर्णिधान बनाता हूं इसी प्रकार आप अलग अलग गुणों से ईश्वर का चिंतन कर सकते हैं।
अब जब ये जान लिया कि ईश्वर सर्वव्यापक है तो हर पल अपने मन में यह भाव बना कर रखना कि ईश्वर मुझे देख रहा है यही ईश्वर प्रणिधान है।
परंतु यहां एक बात पर जरूर ध्यान देना चाहिए कि किसी प्रकार के रूप रंग की हमें कल्पना नहीं करनी है क्योंकि ईश्वर का कोई रंग रूप होता नहीं यदि आप कल्पना करेंगे तो आप कल्पना में ही सीमित रह जाएंगे आगे नहीं बढ़ पाएंगे क्योंकि जो सर्वशक्ति इस पूरे ब्रह्मांड को पूरे संसार को चला रही है उसका कोई रंग रूप नहीं हो सकता और जिसका रंग रूप होता है वह कभी भी सर्व व्यापक नहीं हो सकता। क्योकि यहाँ बात स्थुल्की नहीं शुक्ष्म की है।
ध्यान करने के लिए आसन की उपयोगिता
अब आपको एक साफ दरी या कुछ भी अच्छा आसन बिछा लेना है और उस पर बैठ जाना है आप कोई भी आसन लगा सकते है जिसमे आप सुखसे लम्बे काल तक बैठ सकें.
ध्यान केंद्रित करने के लिए क्या करें?
ईश्वर प्रणिधान बनाने के बाद में साधक को धारणा बनानी पड़ती है धारणा बनाने को ही ध्यान केंद्रित करना बोलते हैं धारणा आप अपने शरीर के विभिन्न हिस्सों पर बना सकते हैं।
जैसे माथे पर, नाक के आगे वाले हिस्से पर, जीभ के आगे वाले हिस्से पर, गले पर, दोनों फेफड़ों के बीच में जो गड्ढा सा होता है उसे ह्रदय प्रदेश बोलते हैं इस पर, नाभि पर, इनमें से किसी भी स्थान पर आप अपनी धारणा बना सकते हैं, धारणा जब आपकी मजबूत होती जाएगी तो वो स्थान आपको साफ़ साफ़ महसूस होगा।
धारणा के लिए मन का सूक्ष्म होना बहुत ही ज्यादा जरूरी होता है तभी आप ठीक प्रकार से धारणा बना पाते हैं और मन को सूक्ष्म करने के लिए सबसे अच्छी विधि होती है सांसो पर ध्यान लगाना चलिए जानते हैं सांसो पर ध्यान किस प्रकार लगाते हैं. आप सांसो पर ध्यान लगाने के लिए योग निद्रा भी कर सकते हैं।
मन को शुक्ष्म बनाने के लिए सांसो पर ध्यान लगाने की विधि क्या है?
अब हम जानते हैं कि धारणा को मजबूत बनाने के लिए मन को सूक्ष्म बनाने के लिए सांसो पर किस प्रकार ध्यान लगाया जाता है।
- शांति से आंखें बंद करके बैठ जाना है
- अब आप अपनी नाक के दोनों छिद्रों पर जहाँ से श्वास आता और जाता है वहां पर अपने मन को टीका लेना है।
- अब जो श्वास भीतर गया है उसको महसूस करना है।
- यानी आपको पता होना चाहिए कि अब श्वास भीतर गया है।
- फिर जब सांस बाहर आए तो आपको पता होना चाहिए कि अब सांस बाहर आया।
- जब आपको पता होने लगे तो उसके बाद में नाक के छिद्रों पर टकराने को महसूस करना है।
- दोनों नाक के छिद्रों पर जब सांस भीतर जाएगी तो वहां टकराकर जाएगी जब बाहर आएगी तो टकराकर आएगी बस उसको आपको महसूस करना है।
यहां मुख्य बात यह है कि इस क्रिया को यंत्रवत नहीं करना है मशीनी क्रिया का रूप नहीं देना है यानी खुद से श्वास लेने छोड़ने का प्रयास नहीं करना है जब शरीर को आवश्यकता होगी तो श्वास लेता है।
जब आवश्यकता होगी तो श्वास छोड़ता है बस उस स्वाभाविक सांस को ही महसूस करना है शुरू शुरू में आपको ये यंत्रवत लग सकता है परन्तु नियमित अभ्यास से ये सब सरल होता जाएगा बस अभ्यास नहीं छोड़ना है।
शुरू शुरू में सांस का महसूस होना पता नहीं चलता है तो उसका उपाय यह है कि आप शुरुआत में 10 से 20 बार लंबे गहरे श्वास लें और थोड़े लंबे गहरी श्वास लें और छोड़े।
जब लम्बा गहरा सांस लेंगे तो आपको साफ-साफ नाक के छिद्रों पर टकराना महसूस होगा बस फिर शांत हो जाए और स्वाभाविक सांस के आने जाने की टकराहट को महसूस करें इस क्रिया को बार-बार करते करते करते करते कुछ दिनों में या कुछ महीनों में आपका मन सूक्ष्म होने लगेगा यानी की धारणा के लिए मन को धार लगा चुके होंगे आप सांसो पर ध्यान लगाने से साँस के रोग भी दूर होते हैं।
शुरवात में तो नहीं परन्तु कुछ दिनों के अभ्यास के बाद आप इस योग्य होने लगेंगे की साँसों पर ध्यान लगाने के साथ साथ अप ईश्वर प्रणिधान भी बनाकर रख पाएँगे, इसमें आपको कुछ समझ नहीं आया तो कमेन्ट में पूछ सकते हैं।
सांसो पर ध्यान लगाना सीखने इस वीडियो से
गायत्री मन्त्र से ईश्वर का ध्यान कैसे करें?
जब आपकी धारणा मजबूत हो जाए तब आपको गायत्री मंत्र या ओ३म् के ध्यान की तरफ बढ़ना चाहिए मैं यहां आपको गायत्री मंत्र और ओ३म् दोनों का ही ध्यान करना सिखाऊंगा अभी हम बात करते हैं गायत्री मंत्र का अर्थ सहित ध्यान किस प्रकार करें?
गायत्री मन्त्र
‘ओ३म् भूर्भव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
गायत्री मन्त्र का अर्थ क्या है देखिए
हे ईश्वर तूने हमें उत्पन किया पालन कर रहा है तू तुझसे ही पाते प्राण हम दुखियो के कष्ट हरता तू तेरा तेज महान है छाया हुआ सभी स्थान हे ईश्वर हमारी बुद्धि को श्रेष्ठ मार्ग पर चला।
गायत्री मन्त्र के जाप के समय साधक को मन्त्र के साथ साथ अर्थ का भी भाव बनाकर रखना पड़ता है मतलब जब आप गायत्री मन्त्र बोलते हैं तो साथ में अर्थ भी चलना चाहिए सत्य बोलूं ये इतना सरल भी नहीं है की कोई भी नया साधक ये सब क्रियाएँ एक साथ कर पाए।
परन्तु आप चिंता मत करें इस लेख को आखरी तक पढ़ते पढ़ते आपको विश्वास हो जाएगा की आप इसे सरलता से कर सकते हैं और कोई समस्या आती है तो मैं हूँ आपके साथ आपकी पूरी साहयता करूँगा।
गायत्री मन्त्र के शुद्ध उच्चारण को इस वीडियो से सीखिए
अभ्यासी के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है महाभारत की घटना
अभ्यासी के लिए जीवन में कुछ भी असंभव नहीं होता है अभ्यास से आप कुछ भी प्राप्त कर सकते हैं महाभारत में एक घटना आती है।
जब महाभारत का आखरी युद्ध चल रहा था जब भीम का दुर्योधन के साथ में गदा युद्ध होने वाला था तो उस समय भगवान श्री कृष्ण जी महाराज ने एक बात कही थी।
अभ्यासी ही विजय प्राप्त करता है यदि आपके सम्मुख बचपन का बलवान मनुष्य खड़ा हो और एक तरफ अभ्यासी खड़ा हो जिसने खूब अभ्यास किया है तो विजय अभ्यासी की होगी।
यानी आप बचपन से कमजोर हैं और यदि आप अभ्यास करते हैं तो आप जन्म के बलवान को भी हरा सकते हैं बस यह अभ्यास की भावना अपने मन में डाल दीजिए और लक्ष्य की तरफ आगे बढ़ चलिए।
गायत्री मंत्र का अर्थ सहित ध्यान सरलता से सीखें
अब हम गायत्री मंत्र के टुकड़े करें इसे अर्थ के अनुसार अलग अलग बाटेंगे ताकि याद रखने में सरलता हो ये विधी मैने अपने लिए बनाई थी इसे आप ठीक से पढेंगे तो जान जाएँगे की गायत्री मन्त्र से Dhyan Kaise Karen
गायत्री मन्त्र | अर्थ | कैसे करें |
ओ३म् भूर्भव: स्व: | तूने उत्पन किया | जब आप ओ३म् भूर्भव: स्व: बोले तो मन में इसका अर्थ भी आए |
तत्सवितुर्वरेण्यं | तेरा तेज महान है | जब आप तत्सवितुर्वरेण्यं बोले तो मन में इसका अर्थ भी आए |
भर्गो देवस्य धीमहि | हमारी बुद्धि में | जब आप भर्गो देवस्य धीमहि बोले तो मन में इसका अर्थ भी आए |
धियो यो न: प्रचोदयात् | अपना तेज धारण करवाइए | जब आप धियो यो न: प्रचोदयात् बोले तो मन में इसका अर्थ भी आए |
अब आप कुछ बातों को अच्छे से समझ लीजिये लगातार अभ्यास से ही सफलता मिलती है आपको शुरू में ये कुछ कठिन प्रतीत होगा परन्तु नियमित अभ्यास से सफलता जरुर मिलेगी , अभ्यास से ही व्येक्ती सिखता है।
यदि आपको लगे की ये आपसे अर्थ सहित नहीं हो पारहा तो आप एक काम कीजिये शुरू में आप सांसो के साथ केवल ईश्वर प्रणिधान बनाकर रखिये।
कुछ दिनों बाद सांसो का ध्यान छोड कर ईश्वर प्रणिधान (मन में ये भाव बनाकर रखना किस ईश्वर मुझे देख रहा है लेकिन किसी रंग रूप की कल्पना नहीं करना ईश्वर प्रणिधान है)
और धारणा बनाकर रखिये जब ये दोनों काम ठीक होने लगे तब ईश्वर प्रणिधान, धारणा और गायत्री मन्त्र इन तीनो को एक साथ कीजिये और जब कुछ दिन या महीने के अभ्यास के बाद ये साथ साथ होने लगे तो कुछ कुछ अर्थ का भी चिंतन कीजिये।
देखो मैं काफी लम्बे समय से इन सबका अभ्यास करता आया हूँ मैं खाते पीते चलते फिरते हर समय ईश्वर प्रणिधान का अभ्यास करता रहता हूँ तब मुझे सफलता मिली है की मैं ये 4 काम एक साथ कर पारहा हूँ।
- ईश्वर प्रणिधान
- धारणा
- जाप
- अर्थ
अब कुछ प्रश्नों के उत्तर
प्रशन – गायत्री मन्त्र से हमें क्या प्राप्त होगा
उत्तर – गायत्री मन्त्र से आप जीवन जीने का तरीका सीखोगे आपका मन शांत रहेगा बुद्धि का विकास होगा संकट के समय भी आप शांत रहेंगे जीवन में जो सफलता आपको चाहिए वो मिलेगी आपकी प्राण शक्ति बढ़ेगी समाधि का मार्ग खुलेगा और राग द्वेष मोह इर्ष्या आदि विकार दूर होंगे सबसे मुख्य उदेश्य जीवन मरण के बंधन से मुक्ति मिलेगी।
प्रश्न- क्या माला की जरूरत है जाप में
उत्तर – नही माला की जरूरत नहीं है जाप के लिए यदि आपको संख्या का ही ध्यान रखना है तो आप माला से एक घंटा जाप करके देख लें कि कितना जाप हुआ एक घंटे में बस फिर माला की जरूरत नहीं पड़ेगी। फिर आप जितने घंटे जाप करें उसे 1 घंटे वाली संख्या से गुणा करदें आपके जाप की संख्या आजेगी।
प्रशन – माला से जाप क्यों नहीं करें
उत्तर – देखिये Dhyan Kaise Karen इसे समझना चाहते हैं तो जब आप ध्यान की गहराई में जाएंगे और बिना हिले डुले ध्यान करेंगे तो ये सांस भी आपको बाधक लगेगी आप देखेंगे जब जब सांस खुद से रूकती है तो आपकी एकागार्ता और गहराई काफी अधिक बढती जाती है अब सोचिये आप माला को फेरने के लिए अंगूठे और ऊँगली को हिला रहे होते हैं
जो आपका ध्यान भांग करेगी और वेसे भी संख्या से हमें क्या करना हमें तो ईश्वर केप्रेम से मतलब होना चाहिए हमें तो इश्वर को प्राप्त करना है समाधि में उसे जानना है हमारा उदेश संख्या नहीं होना चाहिए हमारा उदेश्य ईश्वर होना चाहिए।
बाकी आपकी जैसी इच्छा वेसा करिए मैं तो यहाँ अपने अनुभव की बात बोल रहा हूँ।
प्रश्न – ध्यान केंद्रित करने के लिए क्या करें?
उत्तर – ध्यान को धारणा पर केंद्रित करना चाहिए और धारणा को मजबूत बनाने के लिए आपको अपने मन को शुक्ष्म बनाना होगा उसके लिए आप सांसों पर ध्यान का अभ्यास करें जैसा ऊपर बताया हुआ है फिर 100% सफलता मिलेगी।
प्रश्न – मन को ध्यान में कैसे लगाएं?
उत्तर – मन को ध्यान में लगाने के लिए विचारो से मुक्ति चाहिए सांसों पर ध्यान लगाने का अभ्यास सबसे अच्छा और सरल है इसके अभ्यास से कुछ महीनो में आपका मन आपके वश में होने लगेगा।
प्रश्न – dhyan kaise karen
उत्तर – ईश्वर पर्णिधान बनाकर ही ध्यान करें तभी सफलता मिलेगी ऊपर इसके बारे में विस्तार से बताया है उसमें पढ़िए की Dhyan Kaise Karen.
प्रश्न– शुरुआती व्येक्ती Dhyan Kaise Karen और ध्यान कैसे किया जाता है ?
उत्तर – ये पूरा लेख ही नए शुरवाती व्येक्ती को ध्यान में रख कर लिखा गया है यदि आप इस लेख को पूरा पढेंगे तो आप जान जाएँगे की न्य व्येक्ती Dhyan Kaise Karen.
प्रशन – ध्यान कैसे की जाती है?
उत्तर – जैसा की ऊपर बताया है की ईश्वर प्रणिधान गायत्री मन्त्र इससे आप सिख सकते हैं उपर दी गई जानकारी को विस्तार से पढ़ें आप जान जाएँगे की Dhyan Kaise Karen
प्रश्न – बिना गुरु के ध्यान कैसे करें?
उत्तर – ये सवाल काफी व्येक्ती पूछते हैं की बिना गुरु के Dhyan Kaise Karen क्या एसा सम्भव है. सबसे पहले आपको गुरु के बारे में जानना चाहिए की गुरु क्या करता है गुरु आपको सनातन धर्म के शाश्त्रो की सत्य शिक्षा देता है वो आप परमात्मा की सत्य जानकारी देता है गुरु आपको मन्त्र आदि से ध्यान करने की सही विधि बताता है और मार्ग में कोई बाधा आए तो उसे किस प्रकार आप हल करेंगे कैसे आगे बढ़ेंगे ये बताता है. अभी आप ध्यान की शुरवात तो कीजिये इश्वर आपको आपकी जरूरत के अनुसार गुरु भी उपलब्ध करवादेंगे
प्रश्न – ओम का ध्यान कैसे करें? मेडिटेशन Dhyan Kaise Karen
उत्तर – यदि आप जानना चाहते हैं की ओ३म् का Dhyan Kaise Karen तो आपको ये भी पता होना चाहिए की इश्वर का मुख्य नाम ओ३म् ही है जाप करने की विधि वही है पहले आसन लगें इश्वर प्रणिधान बनाएं फिर धारणा बनाएं और जाप शुरू कर दें अर्थ के लिए ऊपर बताए ईश्वर के गुणों में से कोई भी एक अर्थ लेलें जाए जब भी आप बोले ओ३म् तो उसी समय आपके मन में न्यायकारी आए इसी प्रकार जाप करते जाएं।
प्रश्न – भगवान का Dhyan Kaise Karen
उत्तर – भगवान का Dhyan Kaise Karen इसके लिए आप ये पूरा लेख ठीक ठीक पढ़िए आपको पता चल जाएगा।
प्रश्न – ध्यान करते समय क्या सोचना चाहिए
उत्तर – ध्यान करते समय केवल ईश्वर प्रणिधान ही बने रहे और कुछ नहीं सोचना चाहिए।
प्रशन – सांसों पर ध्यान कैसे लगाएं?
उत्तर – ऊपर विस्तार से बताया गया है की सांसो का Dhyan Kaise Karen
प्रशन – आत्मा का Dhyan Kaise Karen
उत्तर – जब आप ध्यान में आगे बढ़ते जाएँगे तो ईश्वर ही आपको मार्ग दिखाएंगे और ईश्वर को जानने से पहले आप खुद को ही जानेगे तो इसकी चिंता छोडिये और अभ्यास करते रहिये।
प्रशन – रोज कितनी देर ध्यान करें ?
उत्तर रोज सुबह एक घनटा और शाम को एक घंटा ध्यान जरुर करना चाहिए बाकी अधिक करें तो और भी अच्छा
प्रशन – यदि ये सब ना हो पाए तो क्या करें
यदि ये सब ना हो पाए तो भी घबराने या निराश होने की जरूरत नहीं है केवल ईश्वर प्रणिधान और सांस को साध लीजिये अभ्यास से इससे आपके ग्रहण करने की शमता काफी अधिक बढ़ जाएगी फिर खुद से ही सब होने लगेगा
ध्यान करने से क्या क्या फायदे है?
- मन शांत रहेगा चाहे कितनी भी विपदा आए
- उचित निर्णय लेने की शमता बढ़ेगी
- ब्रह्मचर्य सिद्ध होगा
- राग द्वेष आदि विकारों से छुटकारा मिलेगा
- बुद्धि का विकास होगा
- आदि आदि अनेको अनेको लाभ हैं
conclusion लेख का निष्कर्ष
- 1 , मन को एकाग्र करने के लिए सूक्ष्म बनाने के लिए सांसो पर ध्यान का अभ्यास कीजिये
- 2 , फिर कुछ दिन या महीने धारणा को मजबूत बनाइए
- 3 , फिर कुछ महीने ईश्वर प्रणिधान और धारणा को मजबूत बनाइए
- 4 , फिर कुछ महीने ईश्वर प्रणिधान, धारणा , और जाप को एक साथ मजबूत बनाइए
- 5 , और इतना सबकुछ करने के बाद आपमें इतना सामर्थ्य उत्पन हो जाएगा की आप ईश्वर प्रणिधान , धारणा , जाप , अर्थ को एक ही काल में कर रहे होंगे
नोट – ये पूरा लेख मेरे अनुभव पर आधारित है जो मैं अभ्यास लम्बे समय से करता आया हूँ और उसमे सफलता पाई है वही आपके सामने खोल कर रख दिया है यदि कुछ समझ ना आए तो कमेन्ट में पूछिए नमस्ते जी जय श्री राम हर हर महादेव
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Bhai ji om ke dhyan main om ka naad karna chahiye ya kewal samany om ka uchharan karna chahiye.
ओ३म् को आप शुरू शुरू में बोल बोल कर करो फिर मन ही मन अभ्यास करो मन ही मन अभ्यास अधिक उत्तम होता है
Arya ji,
चित्त में जब वृत्तियों की भरमार हो जाती है, तो डर, घबराहट, बैचैनी होने लगती है, इसका क्या समाधान किया जाए ?
जेसा की ऊपर बताया है सांसो पर ध्यान लगाओ मन वश में होने लगेगा फिर आगे का भी बताया है पूरा लेख पढो
जैसा कि आपने dyan का लेख लिखा । उस पर म अपना मार्ग दर्शन चहाता हूँ । म गायत्री मंत्र का जाप करता था( करने की विधि इस प्रकार ह लम्बा गहरा स्वाँस लिया फिर एक स्वाँस में गायत्री मंत्र बोलता था । ओर जब पूरा जाप यानी एक माला पूरी हो जाती थी तब आराम से बेठ कर स्वाँस पर ध्यान रखता था। अभी एक महीना पहले मुजे कुछ अज़ीब सा होने लगा। कुछ दिन तो मेरा पूरा शारीर एसा लगता था कि म इदर उदर बेठे बेठे झुक गया हो या तिरछा होग्या हो पर आँख खोलता था तो सीधा मिलता था । फिर अगले ध्यान में मेरा पूरा सिर गुमने लगा बिलकुल धीरे धीरे अपने आप ही । ओर आनंद आने लगा । ओर स्वम आँख खुल जाती थी जब आँख खुलती थी तो मेरा सिर आसमान की ओर uper उठा मिलता था । एसे एसे अनुभव होते एक दिन बहुत बूरा हूँ उस दिन इस vibration को म नहि समज पाया ओर इतनी ज़ोर ज़ोर से हिलने लगा की में संभल ही नि पाया दिल की धड़कन बहुत तेज होज्ञी , ओर ये दो दिन rha मेरे सरिर में कम्पन जेसा। उसके बाद भई मेने कबी ध्यान नहि लगाया । किसी से मेने discus किया तो वो बोला की तेरी कुंडली ओपन हो rhi ह । अब मेने सब कुछ छोर दिया। सिर्फ़ योग ओर आप द्वारा बताया हूँ योग निंद्रा करता हूँ । यें तो आज आपका लेख mail पर आया तो मन में यही पर्शन आया कि यह lehk मेरे सामने क्यू आया । में जिस चीज़ को भूलना चाहता हूँ वो किसी न किसी through सामने आ जाती ह । आपसे अनुरोध ह की हमें कुछ मार्गदर्शन दे । करूँ तो क्या करूँ । क्यूँकि वो कम्पन बहुत ही बयानक था । जय shree राम
मैं आपको अपना एक अनुभव बताता हूँ 2010 में जब मैने पहली बार ध्यान शुरू किया था तो मेरे माथे पर मछली जैसी फडकन होती थी और वो बढती जाती थी कोई भी माथे पर हाथ लगाकर उसे महसूस कर सकता था उस समय मुझे समझ नहीं आय ये क्या हो रहा है, लेकिन समय के बीतने के साथ साथ अनुभव बढ़ता गया तब समझ आया की शरीर का हिलना फडकन आदि इन सबका कुंडली से कोई लेना देना नहीं है
ध्यान में सबसे बडी बाधा हमारे पुराने विचार हमारी धारणाएँ होती हैं जो किसी ना किसी रूप में आती रहती हैं अब इनका सामना कैसे करना है उसे ध्यान से समझिये ये समाधान मुझे विपश्ना में समझ आया था
इस संसार का एक सत्य ये भी है की कुछ भी स्थाई नहीं है हर पल परिवर्तन हो रहा है पुराना खतम होकर नया बन रहा है
अब आपको क्या करना है उसे समझिये आपके शरीर पर जो कुछ भी हो रहा है आपको बस उसे देखते रहना है यकीं मानिये वो हमेशा नहीं रहेगा वो बदलेगा समाप्त होगा और फिर आप अपने मन्त्र जाप में लग जाएं यदि कभी आनन्द की अनुभूति हो तो उसमे आनन्दित मत होइए यानी उससे राग मत कीजिये क्योकि वो आनंद भी नित्य नहीं है तो केवल द्रष्टा की बहती उसे केवल देखिये यदि कोई बुरी अनुभूति हो तो उससे द्वेष मत कीजिये केवल द्रष्टा की बहती उसे देखिये
बस एसा करने से आपको धीरे धीरे सफलता मिलती जाएगी
और शरीर का आडा तिरछा होना ये तो होता रहता है जब एसा कुछ हो तो अपनी स्थिथि ठीक कर लीजिये
बाकी जो विधि इस लेख में है उसे कीजिये एक एक कदम आगे बढिए
और कुंडली आदि के बारे में मत पढ़िए इससे आप हर कोई भटकता है कल्पना में खो जाता है पतंजली योगदर्शन में कोई कुंडली आदि नहीं है
प्राणायाम के बारे में यो कुछ भी नही लिखा, वो तो ध्यान का एक महत्वपूर्ण अंग है,
चारो प्राणायाम में से कौनसा आसान है कैसे शुरुआती अभ्यासी उसे कर सकता है।
जी प्राणायम का विषय मैं जोड दूंगा इस लेख में
नमस्ते अमित भाई । जब मैं ध्यान में बैठता हु तो मेरे पैर सेट नही हो पाते है पैरों की एड़ियों पर दबाव सा बन जाता है इसका कोई उपाय बताए।
भाई अगर हम किसी एक स्थान पर बैठकर ध्यान कर रहे है तो रोजाना उसी स्थान पर करना चाहिए ? इसका क्या कारण है ।
मेरे नाक में भी पीड़ा है , स्वास एक नाक से कम आता है एक से ज्यादा। मैं बहुत चिंतित रहता हूं इस चीज़ को सोचकर।
मेरी नाक की हड्डी में बचपन मे चोट लगी थी।
ये समस्या मेरे ध्यान लगने म् बहुत बड़ी बाधक है।
आशा करता हु आप मेरे प्रश्नों का यथासम्भव उत्तर देंगे।
ईश्वर आपको सदैव स्वस्थ रखे
जय श्री राम।
जय आर्यावर्त ।
प्रशन – जब मैं ध्यान में बैठता हु तो मेरे पैर सेट नही हो पाते है पैरों की एड़ियों पर दबाव सा बन जाता है इसका कोई उपाय बताए।
उत्तर – ध्यान में बैठने से पहले पैरों के शुक्ष्म व्यायाम कर लिया करो और कुछ सरसों के तेल से हलकी सी मालिश भी कर लिया करो जिससे पैरों की मास्पेशियो में लचीलापन भी आए बाकी आप लगातार बेठने का अभ्यास बनाए रखोगे तो धीरे धीरे परिवर्तन आएगा
प्रशन – भाई अगर हम किसी एक स्थान पर बैठकर ध्यान कर रहे है तो रोजाना उसी स्थान पर करना चाहिए ? इसका क्या कारण है ।
उत्तर – एसी कोई विशेष बात नहीं है की आप जहां बैठकर ध्यान कर रहे हैं वही रोज बैठ कर करें इसके पीछे लोग ये बोलते हैं की वहां उर्जा बन जाती है जो साधक को साधना में साहयक होती है ये सब बकवास झूठी बात है , जिसका अपने मन पर अधिकार है वो कहीं भी बैठकर ध्यान करे उसे तो सफलता मिलेगी ही बस जो स्थान है वो साफ़ स्वच्छ होना चाहिए
प्रशन – मेरे नाक में भी पीड़ा है , स्वास एक नाक से कम आता है एक से ज्यादा। मैं बहुत चिंतित रहता हूं इस चीज़ को सोचकर।
मेरी नाक की हड्डी में बचपन मे चोट लगी थी।
ये समस्या मेरे ध्यान लगने म् बहुत बड़ी बाधक है।
उत्तर -आप रोज अपनी नाक के दोनों छिद्रों में देसी गाय के घी की 2 , 2 बूंद डाला करो और एक बार किसी अच्छे योग शिक्षक से मिलकर सूत्र नेति सिख लो और रोज प्राणायाम करो ये नाक वाली समस्या दूर हो जाएगी , बाकी जो चिंता है ये लगातार ध्यान के अभ्यास से दूर हो जाएगी जिन्दगी मस्त हो जाएगी
Sir dhyaan lgaye Time Dimaag jo Zero free rkhna H Ya Apne Mouth se Kisi ka Naam bolna Hai Ya apne andr hi andr Kisi ka mn hi mn m naam lena hai Btao Guru g
पहले बोल बोल कर गायत्री मन्त्र का अभ्यास फिर मन ही मन , आप इस लेख को ठीक से पढो सब कुछ विस्तार से समझाया है